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लतीफ़ शाह शाहिद

1968 | नौशेरा, पाकिस्तान

लतीफ़ शाह शाहिद

ग़ज़ल 4

 

अशआर 22

गर्दिश-ए-अय्याम से चलती है नब्ज़-ए-काएनात

वक़्त का पहिया रुका तो ज़िंदगी रुक जाएगी

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ख़ुद अपने आप से रहता है आदमी नाराज़

उदासियों के भी अपने मिज़ाज होते हैं

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ताज़ा हवा ख़रीदने आते हैं गाँव में

'शाहिद' शहर के लोग भी कैसे अजीब हैं

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मुझ से तो कोई ताज-महल भी बन सका

बे-नाम दिल की क़ब्र में दफ़ना दिया तुझे

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ये और बात कि तू दो क़दम पे भूल गया

हमें तो हश्र तलक तेरा इंतिज़ार रहा

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