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नज़ीर अकबराबादी

1735 - 1830 | आगरा, भारत

मीर तक़ी 'मीर' के समकालीन। अग्रणी शायर जिन्होंने भारतीय संस्कृति और त्योहारों पर नज्में लिखीं। होली, दीवाली, श्रीकृष्ण पर नज़्मों के लिए मशहूर

मीर तक़ी 'मीर' के समकालीन। अग्रणी शायर जिन्होंने भारतीय संस्कृति और त्योहारों पर नज्में लिखीं। होली, दीवाली, श्रीकृष्ण पर नज़्मों के लिए मशहूर

नज़ीर अकबराबादी

ग़ज़ल 230

नज़्म 29

अशआर 107

जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब हो

ये दाग़ वो है कि दुश्मन को भी नसीब हो

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था इरादा तिरी फ़रियाद करें हाकिम से

वो भी एे शोख़ तिरा चाहने वाला निकला

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मय पी के जो गिरता है तो लेते हैं उसे थाम

नज़रों से गिरा जो उसे फिर किस ने सँभाला

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थे हम तो ख़ुद-पसंद बहुत लेकिन इश्क़ में

अब है वही पसंद जो हो यार को पसंद

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दिल की बेताबी नहीं ठहरने देती है मुझे

दिन कहीं रात कहीं सुब्ह कहीं शाम कहीं

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हम अश्क-ए-ग़म हैं अगर थम रहे रहे न रहे

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टुक हिर्स-ओ-हवा को छोड़ मियाँ मत देस बिदेस फिरे मारा मुकेश

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टुक हिर्स-ओ-हवा को छोड़ मियाँ मत देस बिदेस फिरे मारा मेहदी ज़हीर

बंजारा-नामा

टुक हिर्स-ओ-हवा को छोड़ मियाँ मत देस बिदेस फिरे मारा अज्ञात

बंजारा-नामा

टुक हिर्स-ओ-हवा को छोड़ मियाँ मत देस बिदेस फिरे मारा अज्ञात

रोटियाँ

जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियाँ जसविंदर सिंह

हम अश्क-ए-ग़म हैं अगर थम रहे रहे न रहे

इक़बाल बानो

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ऑडियो 8

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