Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Devendra Satyarthi's Photo'

देवेन्द्र सत्यार्थी

1908 - 2003 | दिल्ली, भारत

मंटो के समकालिक कहानीकारों में शामिल, सन्यासी का रूप धार कर पुरे देश के प्रचलित लोकगीतों को संकलित करने के लिए प्रसिद्ध।

मंटो के समकालिक कहानीकारों में शामिल, सन्यासी का रूप धार कर पुरे देश के प्रचलित लोकगीतों को संकलित करने के लिए प्रसिद्ध।

देवेन्द्र सत्यार्थी की कहानियाँ

841
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

ब्रह्मचारी

यह एक ऐसे शख़्स की कहानी है जो अमरनाथ यात्रा पर निकले एक जत्थे में शामिल है। उस जत्थे में जय चंद, उसका क्लर्क जियालाल, दो घोड़े वाले और एक लड़की सूरज कुमारी भी शामिल है। चलते हुए घोड़े वाले गीत गाते रहते हैं और उनके गीत सुनकर लड़की लगातार मुस्कुराती रहती है। यात्री सोचता है कि वह उसे देखकर मुस्कुरा रही है, मगर वह तो ब्रह्मचारी है। एक जगह पड़ाव पर उसकी जत्थे के एक साथी से ब्रह्मचर्य को लेकर शर्त लग जाती है और वह तंबू से बाहर आकर ज़मीन पर लेट जाता है। खुले आसमान में सोते हुए उसे सूरज कुमारी को लेकर तरह-तरह के ख़्याल आते रहते हैं और वह कहता रहता है कि वह तो ब्रह्मचारी है।

जन्म भूमि

विभाजन के दिनों की एक घटना पर लिखी कहानी। हरबंसपुर के रेलवे स्टेशन पर रेलगाड़ी काफ़ी देर से रुकी हुई है। ट्रेन में भारत जाने वाली सवारी लदी हुई है। उन्हीं में एक स्कूल मास्टर है। उसके साथ उसकी बीमार पत्नी, एक बेटी, एक बेटा और एक दूध पीता बच्चा है। वो बच्चे प्यासे हैं, लेकिन वह चाहकर भी उन्हें पानी नहीं दिला सकता, क्योंकि पानी का एक गिलास चार रुपये का है। गाड़ी चलने का नाम नहीं लेती। उसके चलने के इंतिज़ार में सवारियाँ हलकान हो रही हैं। मास्टर की पत्नी की तबियत ख़राब होने लगती है तो वह उसके साथ स्टेशन पर उतर जाता है, जहाँ उसकी पत्नी का देहांत हो जाता है। अपनी पत्नी की लाश को स्टेशन पर छोड़कर मास्टर यह कहता हुआ चलती गाड़ी में सवार हो जाता है, वह अपनी जन्मभूमि को छोड़कर जाना नहीं चाहती।

क़ब्रों के बीचों बीच

बंगाल के अकाल पर लिखी गई एक मार्मिक कहानी। कम्यूनिस्ट पार्टी के छात्र नेताओं का एक समूह राज्य भर में घूम रहा है और अकाल से मरने वाले लोगों का आंकड़ा इक्ट्ठा कर रहा है। इसके साथ ही उन्हें उम्मीद है कि अमीर राज्यों से वहाँ अनाज पहुँचेगा। लोगों को खाना मिलेगा और मुफ़्त लंगर खूलेंगे। सातों साथी गाँव-गाँव घूम रहे हैं और रास्ते में मिलने वाली लाशों, गाँवों और दूसरे दृश्यों को देखकर उनके जो ख़्यालात हैं वह एक-दूसरे से साझा करते चलते हैं। वह एक ऐसे गाँव में पहुँचते हैं जहाँ केवल दस लोग जीवित हैं लोगों के अंदर इतनी भी ताक़त नहीं है कि वह मुर्दों को दफ़्न कर सकें। इसलिए वह उन्हें दरिया में बहा देते हैं। छात्रों का यह समूह एक क़ब्रिस्तान में पहुँचता है जहाँ उन्हें एक बुढ़िया मिलती है। बुढ़िया के सभी बेटे मर चुके हैं और वह क़ब्र खोद-खोद कर थक गई है। समूह में शामिल गीता बुढ़िया से बात करती है और वापस लौटते हुए उसे लगता है कि बुढ़िया के बेटे उनके आगे चल रहे हैं। किसी फोड़ों की तरह... कब्रों के बीचों-बीच।

अन्न देवता

अकाल पीड़ित एक गाँव की कहानी है। गाँव का निवासी चिन्तू अन्न को लेकर पौराणिक कहानी सुनाता है। कैसे ब्रह्मा ने अन्न को धरती की ओर भेजा था। हालांकि फ़िलहाल उनके पास अन्न पूरी तरह ख़त्म है और बादल है कि लाख उम्मीदों के बाद भी एक बूंद बारिश नहीं बरसा रहे हैं। लोग एक-दूसरे से उधार लेकर जैसे-तैसे अपना पेट भर रहे हैं। गाँव के मुखिया और मुंशी भी गरीबों में धान बाँटते हैं। इस सबसे दुखी चिन्तू कहता है कि अन्न अब अमीरों का हो गया है। वह ग़रीबों के पास नहीं आएगा। वहीं उसकी पत्नी को उम्मीद है कि भले ही अन्न अमीरों के पास चला गया हो लेकिन एक दिन उसे अपने घर की याद ज़रूर आएगी, वह लौटकर अपने घर (गरीबों के पास) ज़रूर आएगा।

राजधानी को प्रणाम

यह एक ऐसे लड़के की कहानी है जो शहर के किनारे अपने बाबा के साथ रहता है और हर दूसरे-तीसरे दिन अपने खोए हुए बाप को ढूँढ़ने के लिए शहर जाता है। उसने सुन रखा है कि उसका बाप बहुत बड़ा कवि है और शहर में ही कहीं रहता है। उन दिनों आज़ादी की चर्चा चल रही थी। वह अपने बाबा के साथ मिलकर शहर के किनारे के अपने कोठे को आज़ादी की देवी के स्वागत के लिए तैयार करता है। मगर शाम को बाबा को साथ लेकर वह अपने एक दोस्त के छगड़े में बैठकर गाँव चला जाता है। गाँव के किनारे पर उन्हें बहुत से लोगों की भीड़ नज़र आती है। पता चलता है कि शहर से कुछ सत्ताधारी लोग आए हैं जो राजधानी के विस्तार के लिए गाँव की ज़मीन चाहते हैं। वह देखता है कि उन लोगों में उसका गीतकार पिता भी शामिल है।

लाल धर्ती

हिंदू समाज में माहवारी को किसी बीमार की तरह समझा जाता है और माहवारी आने वाली लड़की को परिवार से अलग-थलग रखा जाता है। लेकिन यह कहानी इसके एकदम उलट है। एक ऐसे समाज की कहानी जो है तो भारतीय है लेकिन वह माहवारी को बीमारी नहीं बल्कि अच्छा शगुन मानता है। उन दिनों आंध्र प्रदेश अलग राज्य नहीं बना था, हालांकि उड़ीसा के अलग हो जाने पर उसके तेलुगु इलाके आंध्र प्रदेश में मिला दिए गए थे। हीरो आंध्र प्रदेश में अपने एक दोस्त के घर ठहरता है। दोस्त की दो बेटियाँ हैं और उनमें से बड़ी वाली को उन्हीं दिनों पहली बार माहवारी आती है। बेटी के महावारी आने पर वह तेलुगू परिवार किस तरह उत्सव मनाता है वह जानने के लिए पढ़िए यह कहानी।

बटाई के दिनों में

ज़ालिम तभी तक हमलावर रहता है जब तक आप ख़ामोश रहकर ज़ुल्म सहते हैं। बँटाई के दिनों में संतो दीवान साहब को फ़सल में से उसका हिस्सा देने से मना कर देता है। संतो जब बँटाई न देने की बात करता है तो कुछ लोग उसकी मुख़ालिफ़त करते हैं। लेकिन वह डटा रहता है। धीरे-धीरे लोग भी उसकी मुहिम में शामिल हो जाते हैं। पूरा गाँव बँटाई न देने के लिए एक जुट हो जाता है। गाँव में पुलिस आती है। लोगों पर लाठी चार्ज होती है। तो भी लोग अपने हक़ की माँग से पीछे नहीं हटते हैं। आख़िर में पुलिस संतो को गिरफ़्तार कर लेती है, पुलिस की बे-तहाशा मार खाने के बाद भी वह पीछे हटने को तैयार नहीं होता और कहता है... बँटाई के दिन गए।

और बंसुरी बजती रही

यह प्राकृतिक सौंदर्य और दुनिया में बसने वाले जीवों के स्वभाव को बयान करने वाली कहानी है। जंगल में अहीर बूढ़े बरगद के पेड़ के नीचे बैठा बाँसुरी बजा रहा है। उसकी बाँसुरी की तान सुन कर सभी पशु-पक्षी झूमने लगते हैं। साँप भी अपने बिल से निकल आता है और उसकी बाँसुरी की धुन पर नाचने लगता है। दूर खेत में एक किसान औरत कोई गीत गाती है और बताती है कि साँप ने उसकी बहन को डस लिया है। साँप उसकी यह बात सुनकर अपनी साँपन के मारे जाने का ख़्याल करता है और फिर अपनी फ़ितरत को याद कर अहीर को भी डस लेता है। इसके बाद वह सभी साँपों को दावत देता है और अपनी साथियों को खु़द का अस्तित्व बचाए रखने के लिए एक योजना सुझाता है, जिसे आगे चलकर मानव जाति भी अपना लेती है।

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए