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jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Abbas Dana's Photo'

अब्बास दाना

1942 | वड़ोदरा, भारत

अब्बास दाना के शेर

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किसे दोस्त अपना बनाएँ हम किसे दिल का हाल सुनाएँ हम

सभी ग़ैर हैं सभी अजनबी तिरे गाँव में मिरे शहर में

उस से पूछो अज़ाब रस्तों का

जिस का साथी सफ़र में बिछड़ा है

तुम्हारा नाम लिया था कभी मोहब्बत से

मिठास उस की अभी तक मिरी ज़बान में है

अपने ही ख़ून से इस तरह अदावत मत कर

ज़िंदा रहना है तो साँसों से बग़ावत मत कर

तअ'ज्जुब कुछ नहीं 'दाना' जो बाज़ार-ए-सियासत में

क़लम बिक जाएँ तो सच बात लिखना छोड़ देते हैं

जो हैं मज़लूम उन को तो तड़पता छोड़ देते हैं

ये कैसा शहर है ज़ालिम को ज़िंदा छोड़ देते हैं

घर की वीरानियाँ ले जाए चुरा कर कोई

इसी उम्मीद पे दरवाज़ा खुला रक्खा है

तुम आके लौट गए फिर भी हो यहीं मौजूद

तुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू मिरे मकान में है

है जिस्म सख़्त मगर दिल बहुत ही नाज़ुक है

कि जैसे आईना महफ़ूज़ इक चट्टान में है

इस से बढ़ कर तिरी यादों की करूँ क्या ताज़ीम

तेरी यादों में ज़माने को भुला रक्खा है

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