आबरू शाह मुबारक के शेर
जलता है अब तलक तिरी ज़ुल्फ़ों के रश्क से
हर-चंद हो गया है चमन का चराग़ गुल
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टैग : ज़ुल्फ़
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दिवाने दिल कूँ मेरे शहर सें हरगिज़ नहीं बनती
अगर जंगल का जाना हो तो उस की बात सब बन जा
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क्यूँ कर बड़ा न जाने मुंकिर नपे को अपने
इंकार उस का नाना और शैख़ है नवासा
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किया है चाक दिल तेग़-ए-तग़ाफ़ुल सीं तुझ अँखियों नीं
निगह के रिश्ता ओ सोज़न सूँ पलकाँ के रफ़ू कीजे
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टैग : ख़ुद-अज़िय्यती
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जो लौंडा छोड़ कर रंडी को चाहे
वो कुइ आशिक़ नहीं है बुल-हवस है
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टैग : समलैंगिकता
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ग़म सीं अहल-ए-बैत के जी तो तिरा कुढ़ता नहीं
यूँ अबस पढ़ता फिरा जो मर्सिया तो क्या हुआ
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वस्ल की अर्ज़ का जब वक़्त कभी पाता हूँ
जा हैं ख़ामोशी सीं तब लब मिरे आपस में मिल
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हर गदा गोशा-ए-क़नाअत में
शाह है मुल्क-ए-बे-नियाज़ी का
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साथ मेरे तेरे जो दुख था सो प्यारे ऐश था
जब सीं तू बिछड़ा है तब सीं ऐश सब ग़म हो गया
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दिन ताल बाजता है होती है जब सवारी
लश्कर में राग शब कूँ ऊँटों का है उड़ाना
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दिलदार की गली में मुकर्रर गए हैं हम
हो आए हैं अभी तो फिर आ कर गए हैं हम
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मेहराब-ए-अबरुवाँ कूँ वसमा हुआ है ज़ेवर
क्यूँ कर कहें न उन कूँ अब ज़ीनतुल-मसाजिद
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तुम्हारी देख कर ये ख़ुश-ख़िरामी आब-रफ़्तारी
गया है भूल हैरत सीं पिया पानी के तईं बहना
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मालूम अब हुआ है आ हिन्द बीच हम कूँ
लगते हैं दिल-बराँ के लब रंग-ए-पाँ से क्या ख़ूब
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दिल्ली में दर्द-ए-दिल कूँ कोई पूछता नहीं
मुझ कूँ क़सम है ख़्वाजा-क़ुतुब के मज़ार की
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दूर ख़ामोश बैठा रहता हूँ
इस तरह हाल दिल का कहता हूँ
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टैग : ख़ामोशी
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तुम्हारे देखने के वास्ते मरते हैं हम खल सीं
ख़ुदा के वास्ते हम सीं मिलो आ कर किसी छल सीं
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तिरा क़द सर्व सीं ख़ूबी में चढ़ है
लटक सुम्बुल सेती ज़ुल्फ़ाँ सीं बढ़ है
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मिल गया था बाग़ में माशूक़ इक नक-दार सा
रंग ओ रू में फूल की मानिंद सज में ख़ार सा
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शेर को मज़मून सेती क़द्र हो है 'आबरू'
क़ाफ़िया सेती मिलाया क़ाफ़िया तो क्या हुआ
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हो गए हैं पैर सारे तिफ़्ल-ए-अश्क
गिर्या का जारी है अब लग सिलसिला
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कहाँ मिलता है जाँ अन्क़ा है ऐसा बे-नियाज़ आशिक़
कि ख़्वाँ और माँ दिया है सब उड़ा और फिर नहीं पर्वा
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क्यूँ तिरी थोड़ी सी गर्मी सीं पिघल जावे है जाँ
क्या तू नें समझा है आशिक़ इस क़दर है मोम का
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टैग : गर्मी
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इश्क़ का तीर दिल में लागा है
दर्द जो होवता था भागा है
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जब कि ऐसा हो गंदुमी माशूक़
नित गुनहगार क्यूँ न हो आदम
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कभी बे-दाम ठहरावें कभी ज़ंजीर करते हैं
ये ना-शाएर तिरी ज़ुल्फ़ाँ कूँ क्या क्या नाम धरते हैं
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टैग : ज़ुल्फ़
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क्यूँ न आ कर उस के सुनने को करें सब यार भीड़
'आबरू' ये रेख़्ता तू नीं कहा है धूम का
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टैग : रेख़्ता
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नमकीं गोया कबाब हैं फीके शराब के
बोसा है तुझ लबाँ का मज़े-दार चटपटा
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टैग : किस
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ग़म से हम सूख जब हुए लकड़ी
दोस्ती का निहाल डाल काट
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टैग : ग़म
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मुफ़्लिसी सीं अब ज़माने का रहा कुछ हाल नईं
आसमाँ चर्ख़ी के जूँ फिरता है लेकिन माल नईं
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टैग : मुफ़्लिसी
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जो कि बिस्मिल्लाह कर खाए तआम
तो ज़रर नईं गो कि होवे बिस मिला
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दिल कब आवारगी को भूला है
ख़ाक अगर हो गया बगूला है
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अफ़्सोस है कि बख़्त हमारा उलट गया
आता तो था पे देख के हम कूँ पलट गया
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फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र
दम-ब-दम ज़ीस्त नें मेरी मुझे ज़ुन्नार दिया
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अगर देखे तुम्हारी ज़ुल्फ़ ले डस
उलट जावे कलेजा नागनी का
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टैग : ज़ुल्फ़
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यूँ 'आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
जब रू-ब-रू हो तेरे गुफ़्तार भूल जावे
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बोसाँ लबाँ सीं देने कहा कह के फिर गया
प्याला भरा शराब का अफ़्सोस गिर गया
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टैग : किस
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यारो हमारा हाल सजन सीं बयाँ करो
ऐसी तरह करो कि उसे मेहरबाँ करो
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क़ौल 'आबरू' का था कि न जाऊँगा उस गली
हो कर के बे-क़रार देखो आज फिर गया
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टैग : बेक़रारी
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दिखाई ख़्वाब में दी थी टुक इक मुँह की झलक हम कूँ
नहीं ताक़त अँखियों के खोलने की अब तलक हम कूँ
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टैग : ख़्वाब
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सर कूँ अपने क़दम बना कर के
इज्ज़ की राह मैं निबहता हूँ
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तुम्हारे दिल में क्या ना-मेहरबानी आ गई ज़ालिम
कि यूँ फेंका जुदा मुझ से फड़कती मछली को जल सीं
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टैग : तग़ाफ़ुल
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उस वक़्त दिल पे क्यूँके कहूँ क्या गुज़र गया
बोसा लेते लिया तो सही लेक मर गया
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टैग : किस
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तुम यूँ सियाह-चश्म ऐ सजन मुखड़े के झुमकों से हुए
ख़ुर्शीद नीं गर्मी गिरी तब तो हिरन काला हुआ
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हुआ है हिन्द के सब्ज़ों का आशिक़
न होवें 'आबरू' के क्यूँ हरे बख़्त
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आग़ोश सीं सजन के हमन कूँ किया कनार
मारुँगा इस रक़ीब कूँ छड़ियों से गोद गोद
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टैग : रक़ीब
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तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल कर नियाज़-ओ-ख़ाकसारी सीं
वज़ू दरकार नईं कुछ इस इबादत में तयम्मुम कर
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डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ
सुब्ह कूँ खोला न कर इस ज़ुल्फ़-ए-ख़ून-आशाम कूँ
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टैग : ज़ुल्फ़
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रोवने नीं मुझ दिवाने के किया सियानों का काम
सैल सीं अनझुवाँ के सारा शहर वीराँ हो गया
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बोसे में होंट उल्टा आशिक़ का काट खाया
तेरा दहन मज़े सीं पुर है पे है कटोरा
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टैग : किस
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