Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
noImage

बहराम जी

1828 - 1895

पारसी धर्म के विद्वान, उर्दू की साहित्यिक परंपराओं से परिचित होकर उर्दू और फ़ारसी में शेर कहने वाले शायर

पारसी धर्म के विद्वान, उर्दू की साहित्यिक परंपराओं से परिचित होकर उर्दू और फ़ारसी में शेर कहने वाले शायर

बहराम जी के शेर

248
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

पता मिलता नहीं उस बे-निशाँ का

लिए फिरता है क़ासिद जा-ब-जा ख़त

ज़ाहिदा काबे को जाता है तो कर याद-ए-ख़ुदा

फिर जहाज़ों में ख़याल-ए-ना-ख़ुदा करता है क्यूँ

है मुसलमाँ को हमेशा आब-ए-ज़मज़म की तलाश

और हर इक बरहमन गंग-ओ-जमन में मस्त है

नहीं दुनिया में आज़ादी किसी को

है दिन में शम्स और शब को क़मर बंद

ज़ाहिरी वाज़ से है क्या हासिल

अपने बातिन को साफ़ कर वाइज़

ढूँढ कर दिल में निकाला तुझ को यार

तू ने अब मेहनत मिरी बे-कार की

मैं बरहमन शैख़ की तकरार से समझा

पाया नहीं उस यार को झुँझलाए हुए हैं

नहीं बुत-ख़ाना काबा पे मौक़ूफ़

हुआ हर एक पत्थर में शरर बंद

कहता है यार जुर्म की पाते हो तुम सज़ा

इंसाफ़ अगर नहीं है तो बे-दाद भी नहीं

जा-ब-जा हम को रही जल्वा-ए-जानाँ की तलाश

दैर-ओ-काबा में फिरे सोहबत-ए-रहबाँ में रहे

रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-जाँ में बुतों का पड़ गया

अब ब-ज़ाहिर शग़्ल है ज़ुन्नार का फ़े'अल-ए-अबस

इश्क़ में दिल से हम हुए महव तुम्हारे बुतो

ख़ाली हैं चश्म-ओ-दिल करो इन में गुज़र किसी तरह

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए