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बज़्म-ए-ख़वातीन

सरवर जमाल

बज़्म-ए-ख़वातीन

सरवर जमाल

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    इस उ'नवान के तहत बहनों की मुर्सिला सिर्फ़ ऐसी ख़बरें शाए की जाती हैं जो शादी, ग़मी, विलादत या छोटी मोटी कामयाबी के सिलसिले में दूर दराज़ के अइ'ज़ा व क़रीबी दोस्तों से मुतअ'ल्लिक़ हों। ख़बरों का साफ़-सुथरा होना ज़रूरी नहीं, क्योंकि हमारा कातिब कटी-फटी ख़बरों को भी कुछ तर्मीम के साथ साफ़ कर लेने में महारत रखता है। नंबर ख़रीदारी का लिखना भी कोई ज़रूरी नहीं, क्योंकि ऐसी ख़बरों की तौसीअ'–व-इशाअत हमारा अव्वलीन फ़र्ज़ है, ताकि बहनें उन्हें पढ़कर मसर्रत व इ'बरत हासिल कर सकें और एक दूसरे के दुख दर्द में शरीक हो सकें। इदारा 

     

    बहन तहज़ीब ख़ानम सतघनी से तहरीर फ़रमाती हैं:

     

    “अल्लाह ता'ला ने बंदा ज़ादी को बरोज़ मंगल, बतारीख़ चौदह शा'बान ब-मुताबिक़ दस जून साल-ए-रवाँ एक पोती से नवाज़ा है, लड़की का रंग माँ पर और नक़्शा बाप पर गया है। आप बहनों से इस्तिदआ' है कि उसकी दराज़ि-ए-उम्र की दुआ करें, ताकि वो भी मेरी तरह पड़पोती की मालिक बने साथ में अच्छा घर व बर नसीब हो, आमीन।”

     

    कोह-ए-निदा से करीमा बहन लिखती हैं:

     

    “बहनों को ये ख़बर पढ़कर दिली मसर्रत होगी कि कल मेरी प्यारी पड़ोसन की दुख़्तर-ए-नेक अख़्तर के कन छेदन की रस्म अदा हुई। इस सिलसिले में एक तक़रीब बड़ी धूम धाम से मनाई गई जिसमें शहर के बड़े लोगों ने शिरकत की और उम्मीद से बढ़ कर तोहफ़े वसूल हुए। ख़ुदा का लाख लाख शुक्र है कि मेरी पड़ोसन एक अहम फ़र्ज़ से सुबुकदोश हो गईं।”

     

    मोहतरमा फ़ज़ीहत ख़ानम साहिबा कलसर से ख़बर देती हैं।

     

    “मेरे नूर-ए-नज़र लख़्त-ए-जिगर ने इस साल k.G.1 का सालाना इम्तिहान इम्तियाज़ी नंबरों से पास किया है। बरखु़र्दार की उम्र महज़ दस साल है, इसने इतनी कम-उम्री में ऐसी महान कामयाबी हासिल करके अपने ख़ानदान का गुज़िश्ता रिकार्ड तोड़ दिया है। उसकी इस अ'ज़ीम कामयाबी पर अपने प्यारे पर्चे को एक ख़रीदार पेश कर रही हूँ।”

     

    मोहतरमा हिक्मत आरा बेगम सनौली से इंतिहाई मसर्रत के साथ इस बात की इत्तिला बहनों को दे रही हैं कि गुज़िश्ता हफ़्ता उनके घर एक मा'रका-तुल-आरा जंग सास बहू के दरमियान हुई, गर्चे मुक़ाबला सख़्त और बराबर का था, लेकिन इसके बावजूद फ़तह उनकी या'नी बहू की हुई, ये सिर्फ़ उनही के लिए नहीं, बल्कि पूरी “बहू ख़्वाहरी” के लिए फ़ख़्र की बात है, अपनी इस शानदार कामयाबी पर वो दस रुपये नादार बहनों के लिए भेज रही हैं ताकि साल भर के लिए उनके नाम रिसाला जारी कर दिया जाए।”

     

    तमसर से उम्म-ए-कुलसूम साहिबा तहरीर फ़रमाती हैं:

     

    “मैं निहायत रंज-व-अंदोह के साथ ये ख़बर सपुर्द-ए-क़लम कर रही हूँ कि मेरी हक़ीक़ी ननद के चचाज़ाद ससुर मोहतरम के वालिद बुजु़र्गवार अपनी ज़िंदगी की सद साला सालगिरह मना कर बरोज़ हफ़्ता बतारीख़ 15 जूलाई ब-वक़्त बारह बजे शब इस दार-ए-फ़ानी से कूच कर गए। हीफ़ कि अपने पोते-पोतियों की औलादों की ख़ुशियाँ न देख सके।

     

     

    हसरत उन ग़ुंचों पे है जो बिन खिले मुरझा गए

     

    बहनों से गुज़ारिश है कि वो मरहूम के ईसाल-ए-सवाब के लिए कम से कम एक ख़त्म क़ुरान-ए-पाक का करके उनकी रूह को सवाब पहुँचाएँ और ख़ुद सवाब-ए-दारैन हासिल करें।”

     

    (इदारा आप के ग़म में बराबर का शरीक है... इदारा)

     

    मोहतरमा काज़िया ख़ातून साहिबा झांकी से फ़रमाती हैं:

     

    “मेरे ख़ालू की फूफी के चमनिस्तान हयात में दस बच्चों के बाद ग्यारहवीं बच्चे ने फूल खिला कर एक टीम को मुकम्मल किया है, ख़ुदा नौ-मौलूद को पूरी टीम के साथ रहती दुनिया तक क़ायम रक्खे और किसी तरह का ग़म-व-फ़िक्र उनकी ख़ुशियों पर फ़तह न पाए। आमीन सुम्मा आमीन।

     

    मोहतरमा हसीन बानो साहिबा चक्कर लिखती हैं:

     

    “मेरे होंट मोटे और दाँत लंबे हैं। हंसती हूँ तो बुरी लगती हूँ, बहन कोई आज़मूदा इलाज बताएँ।”

     

    (जवाबन अ'र्ज़ है कि हंसना या मुस्कुराना बिल्कुल छोड़ दें, आप अच्छी लगने लगेंगी, आज़मूदा तर्कीब है—इदारा)

     

    बहन गौहर दाना साहिबा बखेरपुरी से लिखती हैं...

     

    “मेरे सगे देवर के ख़ुसर साहब के हक़ीक़ी बड़े भाई ऐ'न आ'लम-ए-जवानी में इस दार-ए-फ़ानी से कूच कर गए। मरहूम ने अपने पीछे चार बेवाएँ, आठ साहबज़ादे, ग्यारह साहबज़ादियाँ और पच्चास हज़ार क़र्ज़ छोड़े हैं। ख़ुदा से दुआ गो हूँ कि ख़ुदा उनकी मग़फ़िरत करे और पसमाँदगान और क़र्ज़ ख्वाहों को सब्र-ए-जमील अ'ता फ़रमाए, आमीन।”

     

    मोहतरमा हूर बानो साहिबा सुंबूल से तहरीर फ़रमाती हैं:

     

    “मेरी पेशानी चौड़ी, कान बड़े, आँखें छोटी और रंग काला है, जिनकी वजह से मेरी दिलकशी में कमी आ गई है, इससे निजात दिलाने के लिए बहन कोई आसान, सस्ता और मुजर्रिब नुस्ख़ा या तर्कीब लिखें।”

     

    (बहनें अपनी इस मुसीबत-ज़दा बहन की मुसीबत दूर करने की तरफ़ रुजू होकर दोनों जहाँ का सवाब हासिल करें... इदारा)

     

    मोहतरमा गुल ख़ैरू साहिबा को मुर्ग़ का हलवा, चिरौंजी की दाल और कटहल की खीर बनाने की तर्कीब दरकार है।

     

    (मोहतरमा! आप इसके लिए “दस्तरख़्वान जदीद बे-तस्वीर” की एक जिल्द दफ़्तर से बज़रिया वी.पी. मंगवा लें, इसमें आपको मतलूबा तर्कीबों के अ'लावा बहुत से दूसरे नादिर-व-अनोखे पकवान की तर्कीबें भी मिल जाएँगी—इदारा)

     

    मोहतरमा नासिहा बेगम साहिबा कांके से तहरीर फ़रमाती हैं:

     

    “मेरी जेठानी की ख़ालाज़ाद बहन की ननद की शादी ख़ाना आबादी जनाब मंज़ूर हसन साहब ओ. डब्ल्यू.एल. के साहब ज़ादे मक़बूल हसन साहब एफ़.ओ.एक्स. से बरोज़ बुध बतारीख़ 27अगस्त 1971ई. की शब को हुई। ख़ुदा से दस्त ब-दुआ हूँ कि दूल्हा-दुलहन की ज़िंदगी हर शब शब्ब-ए-बरात और हर रोज़ रोज़-ए-ईद की मिसाल हो। दूल्हा तमाम उम्र दुल्हन का ग़ुलाम रहे और दुल्हन की ज़िंदगी सास ननद के झगड़ों, बल्कि ख़ुद उनकी ज़िंदगी से पाक-व-साफ़ रहे।”

     

    मोहतरमा आ'रिफ़ा बेगम जमोई से लिखती हैं:

     

    “मेरी वालिदा अ'र्से दस साल से आ'रिज़ा-ए-क़ल्ब में मुब्तिला हैं। बहनें कोई ऐसा घरेलू टोटका लिखें कि वो इस मूज़ी मर्ज़ से निजात पा जाएँ।”

     

    (बहनें मुतवज्जे हों— इदारा)

     

    जवाबात
    मोहतरमा क़ुदरत सुबहान बानो के मसाइब के जवाब में मोहतरमा फ़ज़ीलतुन्निसा बेगम सिरसी से तहरीर फ़रमाती हैं:

     

    “बहन! आपके शौहर की बेराह रवी को पढ़ कर और आपकी मुसीबत को याद करके मैं आठ-आठ आँसू रोयी।आप सिरसी के तकिया वाले शाह साहब से मिल कर कोई ता'वीज़ या गंडा हासिल कीजिए। इसके इस्तेमाल से आपके शौहर तमाम दुनिया को छोड़ कर सिर्फ़ आपके होकर रहेंगे। साथ ही आप तिलस्मी काजल भी लगाया करें। शौहर पर इसका असर जादू की तरह होता है।

     

    मोहतरमा समीना साहिबा ने बाल बढ़ाने की तर्कीब पूछी है, जिसके जवाब में आ'लिया सुल्ताना ने ये चंद नुस्खे़ इरसाल किए हैं...

     

    1. पाव भर प्याज़ एक बोतल सिरका में पका कर पीस लें। हर रोज़ बालों की जड़ों में अच्छी तरह मालिश करें, बाल बे-तहाशा बढ़ जाएँगे।

     

    2. मेंढ़क का सर कड़वे तेल में पका कर सर में लगाऐं।

     

    3. शहतूत की पत्ती अरहर की दाल में पीस कर बालों को धोएँ। बाल ख़ूब बढ़ेंगे, कड़वे तेल में खठाई पीस कर मिला लें और बालों की जड़ों में लगाएँ, तो बाल सफ़ेद नहीं होंगे और ख़ूब बढ़ेंगे।

     

    4. बालों को बढ़ाने का सब से आसान नुस्ख़ा ये है कि बाज़ार से नक़ली बाल ख़रीद लें और अपने असली बालों में लगाएँ।बहुत ही हमागीर नुस्ख़ा है। नक़्ल अस्ल से बढ़ जाएगा।

     

    नून.काफ़. साहिबा ने बालकोट से गुज़िश्ता माह क़द बढ़ाने की तर्कीब पूछी थी, मोहतरमा ख़ालिदा सिद्दीक़ी साहिबा उसकी तर्कीब लिखती हुई फ़रमाती हैं;

     

    “क़द बढ़ाने के लिए मुक़व्वी ग़िज़ाएँ काफ़ी मददगार साबित होती हैं, लिहाज़ा खाने में घी, दूध(दूध अगर ऊंटनी का दस्तियाब हो जाए तो ज़्यादा बेहतर होगा) मक्खन वग़ैरा ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल करें। इसके लिए जिमनास्टिक बेहद ज़रूरी है। नून.काफ़. साहिबा को चाहिए कि चमगादड़ की तरह उल्टा लटकने की कोशिश करें, आज़मूदा नुस्ख़ा है, क़द ज़रूर बढ़ जाएगा।”

     

    एक मोटी बहन के लिए मोहतरमा काहीदा सुल्तान साहिबा तहरीर फ़रमाती हैं:

     

    “बहन! मोटापा दूर करने का सबसे अच्छा इलाज नेचुरोपैथी होता है। आप इसे ज़रूर आज़माएँ। इलाज ज़ैल में दर्ज है;

     

    इलाज:
    दो यौम ख़ाली हवा पर गुज़ारा किया जाए। या'नी सिर्फ़ हवा खाई जाए। तीसरे रोज़ सिर्फ़ तरकारियाँ, सुब्ह दो उबले हुए आलू, (वज़न दस ग्राम से ज़्यादा न हो) दोपहर में कद्दू का सूप (एक बड़ा चमचा) शाम एक काफ़ी की प्याली में बगै़र शकर व दूध के हल्की चाय, बल्कि अगर सिर्फ़ गर्म पानी पियें तो ज़्यादा मुफ़ीद होगा। रात को फिर उबले हुए दो आलू(वज़न दस ग्राम) नमक किसी चीज़ में डालें तरकारी ख़ुद जिस्म में नमक मुहय्या करेगी... चौथे दिन भी यही ग़िज़ा रहेगी..., पाँचवें और छठे दिन महज़ फलों के जूस पर गुज़ारा करें, एक वक़्त में जूस एक बड़े चमचे से ज़्यादा न पिएँ... सातवें दिन भी यही सब चीज़ें चलेंगी। सिर्फ़ दोपहर में एक रोटी, अंडे की ज़र्दी के चौथाई हिस्से से खाएँ।(रोटी का वज़न मुर्ग़ी के एक लंबे पर के वज़न से ज़्यादा न हो...) कभी-कभी मछली और गोश्त भी जी चाहे तो खा सकती हैं लेकिन वज़न दस ग्राम से ज़्यादा न हो।

     

    एहतियात:
    खाने में नमक, शकर, सोडा, हर तरह के मसाले, दूध, घी, मक्खन, मिठाई वग़ैरा बिल्कुल न खाएँ। सलाद, पनीर, लेमूँ, रस वाले फल बिल्कुल न खाएँ।

     

    (आलू, चीनी, चावल, रोटी, गोश्त, मछली और अंडा मुंदर्जा बाला वज़न के मुताबिक़ खा सकती हैं)

     

    ये ख़ुराक आप कम से कम साल भर खाएँ, अगर दुबली सींक-सलाई न हो जाएँ तो हमारा ज़िम्मा...”


    स्रोत:

    मुफ़्त के मश्वरे (Pg. 73)

    • लेखक: सरवर जमाल
      • प्रकाशक: बिहार-ए-उर्दू अकादमी, पटना
      • प्रकाशन वर्ष: 1981

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