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हसीना एटम बम

मोहम्मद यूनुस बट

हसीना एटम बम

मोहम्मद यूनुस बट

MORE BYमोहम्मद यूनुस बट

    उसे शायद एटम बम इसलिए कहते हैं कि जो हीरो उसके साथ एक गाना फ़िल्मा ले, वो फिर हीरो कम और हीरोशीमा ज़्यादा लगने लगता है। वो फ़िल्म इंडस्ट्री के क़ाबिल-ए-दीद मक़ामात में से एक है। बचपन ही से उसमें अदाकारा बनने की सलाहियतें थीं। यानी दिन का काम रात को करती। बारह साल की उम्र में ही उसकी आवाज़ इतनी बदल गई कि वो नाँ कहती तो हाँ लगता अलबत्ता हाँ कहती थी, हाँ करती थी।

    ताल्लुक़ उस ख़ानदान से जहाँ माएं बेटियों को इतना चेक नहीं करतीं, जितना चेक समझती हैं। उसकी नानी के दौर में एक हुकमरान ने उनके कुश्तों के पुश्ते लगा दिए तो उन्होंने उनकी पुश्तों को कुश्ते लगा दिए। उसकी वालिदा की बातें हिक्मत भरी होती हैं यानी हर चंद फ़िक़्रों के बाद माजूनों और मुरब्बों का ज़िक्र होता है। अलबत्ता ये ख़ुद मुरब्बे को मुरब्बे कहती हैं। उम्र के बारे में उनके हाँ कोई झूट नहीं बोलता। उसकी वालिदा से उम्र पूछो तो कहेगी, “तीस के ऊपर हूँ।” और वो वाक़ई ठीक कहती है। उसकी उम्र तीस से ऊपर है यानी सत्तर साल है। घर में हसीना एटम बम की अपनी वालिदा के साथ तस्वीर है, जब उसकी वालिदा अभी दस बारह साल की बच्ची थी। हसीना एटम बम डिब्बे के दूध पर पली जिसकी वजह उसकी वालिदा ये बताती है कि डाक्टर ने कहा था, “बच्ची के मुँह में जो कुछ डालो, उसे पहले उबाल लो।” बचपन में जब शाम को उसे ट्युशन पढ़ाने वाला टीचर पूछता कि ग्यारह के बाद क्या आता है तो कहती, “मास्टर साहब, ग्यारह के बाद कोई नहीं आता, बेशक क़सम ले लें।”

    साल में चंद महीने शादीशुदा रहती है। कहती है, “मेरे तीन बच्चे हैं, एक पहले ख़ाविंद से, एक तीसरे से और एक मेरा अपना है।” पूछो कि जब तीसरा बच्चा पैदा हुआ उससे काफ़ी अरसा क़ब्ल तुम्हारा शौहर फ़ौत हो चुका था। कहेगी, “वो फ़ौत हुआ था, मैं तो फ़ौत नहीं हुई थी।” जो बच्ची पहले उसे माँ कहती, अब ये उसे यूँ मिलती है जैसे उसकी बहन हो। यूँ उसने रवय्ये से उसकी माँ-बहन एक कर दी है। कहती है, पहला ख़ाविंद इस क़दर शक्की था कि मैंने मरी की पहाड़ियों पर बैठ कर उसे तस्वीर भेजी और लिखा मेरा सारा दिन मरी की पहाड़ियों पर तुम्हारे बग़ैर यूँ तन्हा गुज़रता है तो वो बजाय मोहब्बत का जवाब मोहब्बत से देता, उसने आगे से ये लिख भेजा कि तुम तन्हा थी तो फिर ये तस्वीर किस ने खींची?

    पहले घर ऐसा था कि उसे पहलू बदलने के लिए भी ख़ाविंद को बाहर भेजना पड़ता। जूँ-जूँ घर बड़ा होता गया, ख़ाविंद छोटा होता गया। बाद में घर इतना बड़ा हो गया कि उसे ख़ाविंद से भी बात करने के लिए टेलीफ़ोन इस्तेमाल करना पड़ता। फिर एक रोज़ वो स्टूडियो जाते हुए नौकरों से कह गई कि मेरी वापसी तक वो तमाम चीज़ें जिन्हें मैं इस्तेमाल नहीं करती, घर में नहीं होनी चाहिएं और वो उसके घर वापस आने से पहले ही घर छोड़कर चला गया।

    दूसरी शादी दो दिन ही चली। उसके जागीरदार आशिक़ ने शादी से अगली सुबह जब वो बग़ैर मेकअप के सोई हुई, उठकर सवेरे सवेरे अख़बार पढ़ रही थी, उसे सास समझ कर गुफ़्तगु शुरू कर दी जो तलाक़ पर जा के ख़त्म हुई। उसने ख़ाविंद की ज़िंदगी पर जो अनमिट नुक़ूश छोड़े, उनमें से एक उसके माथे पर भी था। कहती है, “तीसरे ख़ाविंद से पहली लड़ाई की सुलह उस मौलवी ने कराई जो उनका निकाह पढ़ाने आया था।” एक बार ख़ाविंद ने लड़कर क़सम खाई कि महीना तुम्हें मुँह दिखाऊँगा। बहुत परेशान हुई। एक फ़िल्मसाज़ ने तसल्ली देते हुए कहा, “परेशान होने की क्या ज़रूरत है? चुटकी बजाते महीना गुज़र जाएगा।” तो कहने लगी, “इसीलिए तो परेशान हूँ।” कहती, “मैं कई कई दिन उसके साथ बावफ़ा रहती लेकिन फिर भी वो शादी की सालगिरह पर पाँच मिनट की ख़ामोशी इख़्तियार करता। चौथी सालगिरह पर वो हमेशा के लिए ख़ामोश हो गया।”

    दुनिया में बंदा आता है तो नंगा होता है और जब जाता है, सफ़ेद लट्ठे में मलबूस होता है। गोया क़ियाम-ए-दुनिया का वाक़िया उतना ही है जितना नंगे का लिबास पहनना। हसीना एटम बम वो लिबास पहनती है जो देर से शुरू हो और जल्दी ख़त्म हो जाए। लिबास पहना हो तो पता नहीं चलता कि वो लिबास के अंदर है और बाहर निकलना चाहती है या लिबास से बाहर है और अंदर जाना चाहती है। बैठी हुई तस्वीर लगती है। “फ़े” कहता है, “वो तस्वीर तो है मगर ओवर एक्सपोज़्ड और ओवर डेवलप्ड।” उसका लिबास इस क़दर तंग होता है कि पास खड़े शख़्स का सांस लेना मुश्किल होजाता है। पेशावर की रहने वाली है और कहते हैं, पश्तो फिल्मों को पसंद करती है। हालाँकि भरी महफ़िल में उससे पश्तो फ़िल्म का ज़िक्र कर दिया जाये तो मुँह फेर कर खड़ी हो जाती है। अलबत्ता अपने इलाक़े के मर्दों का इस क़दर एहतिराम करती है कि उनकी तरफ़ पुश्त करके खड़ी नहीं होती।

    अमरीका में रही। एक सहाफ़ी ने पूछा, “वहाँ आप सुबह-सवेरे उठकर सबसे पहले क्या करती थीं?” कहने लगी, “सबसे पहले उठकर में वापस अपने अपार्टमेंट में आती।” दौरान-ए-गुफ़्तगू अपने बारे में “हम” इस्तेमाल करती है। पहली शादी के वक़्त सहेलियों के दरमियान बैठी थी तो मौलवी साहब ने पूछा, “आपको फ़ुलां बिन फ़ुलां क़बूल है।” तो शर्मा कर कहा, “हमको क़बूल है।” तो मौलवी साहब ने फ़ौरन टोका, “बीबी सिर्फ़ अपनी बात करें।”

    किसी ने पूछा, “आपको सबसे पहले जिसने प्यार किया आपने उसे क्या कहा? बोली, “उसको मैंने क्या कहना था, क्योंकि उस वक़्त तक तो मैंने अभी बोलना शुरू नहीं किया था।” जिस जिस्म पर तकिया था, अब वो ख़ुद तकिया लगता है। पहले उसकी गर्दन सुराही जैसी थी, अब तो ये ख़ुद सुराही लगता है जो बहुत सराही गई। ख़ानदान तो वो है जिसमें बेटी को माँ का बोझ भी उठाना पड़ता है मगर उसे देखकर लगता है, उसने अपना बोझ इतना उठाया नहीं, जितना लटकाया हुआ है। उसका बदन क़ौसों से मिलकर बना है मगर हर क़ौस कोस कोस की है। जिल्द इतनी पतली कि झुके तो लगता है अभी जिस्म का कोई हिस्सा ढलक कर नीचे उतर पड़ेगा। बाज़ू इतने लम्बे कि फ़िल्म में अंगड़ाई ले तो स्क्रीन से बाहर निकल आते हैं।

    उसका घर देखकर बंदा घबरा जाता है मगर वो फिर भी घेर लेती है। स्लीमिंग सेंटर जाती रही, जिससे आहिस्ता-आहिस्ता उसका लिबास स्लिम होता गया। मगर जिस्म अब भी ऐसा है कि सिर्फ़ खड़े होने के लिए उसे एक बंदे की जगह आगे और एक ही की पीछे ख़ाली रखना पड़ती है। चाय के साथ सकैंडल पसंद करती है कि उससे चाय में चीनी डालने की ज़रूरत नहीं रहती। कहती है, “जवान वफ़ादार होना चाहता है मगर हो नहीं सकता और बूढ़ा बेवफ़ा होना चाहता है मगर हो नहीं सकता, यूँ वो बहाने बहाने ख़ुद को जवान साबित करती रहती है।”

    उसकी उदासी भी एक उदासी ही होती है। पूछो, “मोहब्बत कैसे शुरू होती है?” तो कहेगी, “मोहब्बत से शुरू होती है।” किसी ने कहा कि मियां-बीवी के झगड़ों में सालिस बच्चे होते हैं, तो कहने लगी बिल्कुल ग़लत, मियां-बीवी के झगड़ों में सालिस रात होती है। कहती है, “मर्द और औरत की सोच एक जैसी होती है, औरत मर्द से सोना माँगती है और मर्द भी बदले में सोना ही चाहता है।”

    इस क़दर बोलती है कि सिर्फ़ “नहीं” कहने में तीन घंटे लगा देती है। अलबत्ता “हाँ” कहने में सेकेंड नहीं लगाती। कहती है, अब इतनी उम्र की नहीं रही, जितनी पन्द्रह साल पहले थी, पाँच साल बड़ी हो चुकी हूँ। सहाफ़ियों से नाराज़ रहती है कि ये कुछ का कुछ लिख देते हैं। बोली, “एक बार मैंने कहा, मेरा चेहरा देखकर वक़्त रुक जाता है तो उन्होंने अगले दिन ये छाप दिया कि मैं अपने चेहरे से चलता हुआ क्लाक रोक सकती हूँ।”

    एक दफ़ा उसके किसी परस्तार ने स्टूडियो से लौटते हुए उसका ज़बरदस्ती हाथ पकड़ लिया तो उसने ग़ुस्से से कहा, “अगर तुमने आध घंटे के अंदर अंदर मेरा हाथ छोड़ा तो मैं पुलिस को बुला लूँगी।” हल्की फुल्की किताबें पसंद करती है। कहती है, हल्की फुल्की हों तो उन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में आसानी रहती है। एक दफ़ा “फ़े” उसे मिलने गया तो वो नंगे-पाँव दरवाज़ा खोलने आई। उसके पाँव ठोढ़ी तक नंगे थे। कहती है, “अगर कोई अदाकारा को लिबास के बग़ैर देखकर ख़ुश हो तो यक़ीन करलें, वो जेबकतरा है।” वो दुनिया के हर मर्द से मोहब्बत करना चाहती है। इसमें कोई बुराई नहीं मगर मसला ये है कि वो अलैहदा अलैहदा करना चाहती है। सुबह उठकर जब तक मेअप ना करले, ख़ुद अपनी शक्ल नहीं देखती। कहती है, “मुझे लिपस्टिक लगाने के बीस तरीक़े आते हैं।”

    “फ़े” ने कहा, “हमें तो एक तरीक़े का पता है, लिपस्टिक होंटों पर मलो।” तो बोली, “इक्कीस।” लिपस्टिक लगाए बग़ैर तो वो टेलीफ़ोन पर बात नहीं करती। एक बार उसकी वालिदा इस क़दर बीमार हुई कि बिस्तर पर चादर की तरह बिछ गई। किसी ने कहा, “अल्लाह से दुआ करो। उनकी हालत से तो लगता है कि मौत का फ़रिश्ता आना चाहता है।” उसने फ़ौरन मुतवज्जा हो कर पूछा, “कौन आना चाहता है? ज़रा मेरी लिपस्टिक देना।”

    स्रोत:

    अफ़रा तफ़रीह (Pg. 5)

    • लेखक: मोहम्मद यूनुस बट

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