अलीम सबा नवेदी
अशआर 3
मैं फिर रहा हूँ शहर में सड़कों पे ग़ालिबन
आवाज़ दे के मुझ को मिरा घर पुकार ले
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लहू की सूखी हुई झील में उतर कर यूँ
तलाश किस को वो करता रहा मिरे अंदर
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घर जल रहा था सब के लबों पर धुआँ सा था
किस किस पे क्या हुआ था ग़ज़ब बोलने न पाए
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