अपनी ख़ातिर सितम ईजाद भी हम करते हैं
हिज्र की मंज़िल हमें अब के पसंद आई नहीं
अगर कोई ख़लिश-ए-जावेदाँ सलामत है
अपनी ख़ातिर सितम ईजाद भी हम करते हैं
अब रहे या न रहे कोई मलाल-ए-दुनिया
अहल-ए-दुनिया देखते हैं कितनी हैरानी के साथ
उसी दर्द-आश्ना दिल की तरफ़-दारी में रहते हैं
एक तूफ़ान का सामान बनी है कोई चीज़
एक पल में दम-ए-गुफ़्तार से लब-ए-तर हो जाए
किसी के ख़्वाब से बाक़ी न बेदारी से क़ाएम है
किसी के घर न माह ओ साल के मौसम में रहते हैं
तेरा चेहरा न मिरा हुस्न-ए-नज़र है सब कुछ
मुख़्तसर सी ज़िंदगी में कितनी नादानी करे
मतलब के लिए हैं न मआनी के लिए हैं
ये जहाँ ख़ूब है सब इस के नज़ारे अच्छे
यूँ ही सर चढ़ के हर इक मौज-ए-बला बोलेगी
aah ko chahiye ek umr asar hote tak
SHAMSUR RAHMAN FARUQI