aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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राकेश उलफ़त

1961 | अमृतसर, भारत

राकेश उलफ़त

ग़ज़ल 25

अशआर 3

तुम्हारे हिस्से के जितने भी ग़म हैं मैं ले लूँ

मिरे नसीब की हर इक ख़ुशी मिले तुम को

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पानी हिला नहीं है अभी भी है जूँ का तूँ

पत्थर तो एक फेंक के देखा ज़रूर है

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मिरा फ़ख़्र-ए-हयाती आज भी किरदार है मेरा

इसी नग से मुज़य्यन तुर्रा-ए-दस्तार है मेरा

 

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