ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी के शेर
ऐसा गुलशन की सियासत ने किया है पाबंद
हम असीरान-ए-क़फ़स आह भी करने के नहीं
जादा-ए-राह-ए-मोहब्बत की दराज़ी मत पूछ
मंज़िल-ए-शौक़ का हर ज़र्रा बयाबाँ निकला
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