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आम का दरख़्त

नूरुल हसनैन

आम का दरख़्त

नूरुल हसनैन

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    एक थे गुड्डू मियाँ, बड़े ही नट-खट, शरीर और बातूनी, महल्ले के सब ही लोग उनसे प्यार करते थे। वो सब के राज-दुलारे थे। जो भी उन्हें देखता बे-इख़्तियार चाहने लगता। शरारती-पन के बावजूद गुड्डू मियाँ में बदतमीज़ी नाम को थी। वो हमेशा साफ़-सुथरे कपड़े पहनते, अपनी चीज़ों को सलीक़े से रखते, बड़ों का एहतिराम करते और अपने दोस्तों से ख़ूब मुहब्बत करते। उन्हें अपने खिलौने देते, उनसे अच्छी-अच्छी बातें करते, अब भला उनका दोस्त बनना कौन पसंद नहीं करेगा?

    लेकिन गुड्डू मियाँ का सबसे अज़ीज़ दोस्त था आम का दरख़्त, ये दरख़्त उनके आँगन में था। घर के सभी लोग उसे दादा-जान की निशानी समझते थे। गुड्डू मियाँ को अपने इस दोस्त पर बड़ा नाज़ था। जब भी उन्हें गर्मी महसूस होती वो अपने दोस्त से कहते और उन्हें ताज़ा हवा मिल जाती। जब कभी आम का मौसम आता गुड्डू मियाँ अपने दोस्त से ख़ूब आम खाते। अपने दूसरे बहन-भाईयों को भी खिलाते, दोस्तों की दावत भी करते और ख़ूब मज़े उड़ाते।

    आम का ये दरख़्त भी गुड्डू मियाँ को बहुत चाहता था। वो उनसे मज़े-मज़े की बातें करता, कोयल और पपीहे की कहानियाँ सुनाता, ठंडी छाओं देता। गुड्डू मियाँ सारा दिन उसी के साथ खेलते रहते। कभी उसकी गोद में बैठ जाते। कभी उसकी शाख़ों पर झूला झूलते, कभी उसकी छाओं में बैठ कर तोता मैना की बोलियाँ सुनते। बस सारा दिन वो होते और उनका दोस्त आदम का दरख़्त होता।

    लेकिन एक रोज़ ख़ूब तेज़ हवाएँ चलने लगीं। काले-काले बादल आसमान पर छाने लगे। फिर ये बादल आपस में ख़राब बच्चों की तरह ज़ोर-ज़ोर से लड़ने लगे। बिजलियाँ चमकने लगीं, हवाओं ने डरपोक बच्चों की तरह चीख़ना चिल्लाना शुरू कर दिया और धुआँ-धार बारिश होने लगी। गुड्डू मियाँ अपने कमरे में दुबके बैठे थे। उनका दिल बार-बार चाह रहा था कि किसी तरह अपने दोस्त आम के दरख़्त को अपने कमरे में बुला लें, और उसे गर्म-गर्म चाय पिलाऐं। बेचारा अकेला पानी में भीग रहा था। उसे कितनी सर्दी लग रही होगी? उन्होंने अपने दोस्त को कई आवाज़ें दीं, लेकिन शदीद तूफ़ान के बाइस उनकी आवाज़ कमरे से बाहर पहुँची ही नहीं।

    तूफ़ान बढ़ता ही जा रहा था। बिजलियाँ ज़ोर-ज़ोर से कड़कने लगीं। फिर एक ज़ोरदार धमाका हुआ और आम का दरख़्त तूफ़ान की ताब ला कर धड़ाम से नीचे गिर पड़ा। उसकी चीख़ से सारा महल्ला गूँज उठा। गुड्डू मियाँ ने भी उसके गिरने की आवाज़ सुनी। वो तड़प उठे, और ख़ुद भी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे।

    आख़िर अल्लाह-अल्लाह कर के तूफ़ान थमा। गुड्डू मियाँ दौड़ते हुए अपने दोस्त के पास पहुँचे। क्या देखते हैं कि आम का दरख़्त पूरे आँगन में ढेर हो गया है और उसकी शाख़ें तकलीफ़ से कराह रही हैं। वो अपने दोस्त की तकलीफ़ बर्दाश्त कर सके, और ख़ुद भी रोने लगे। अपने नन्हे-नन्हे हाथों से कभी उसे सहलाते कभी उसे उठाने की कोशिश करते और कभी डब-डबाई आँखों से उसे घूरने लगते। आम के दरख़्त ने जब अपने इस नन्हे दोस्त का ख़ुलूस देखा तो अपना दर्द भूल गया। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट नमूदार हुई। गुड्डू मियाँ उसे समझाने लगे, “दोस्त तुम घबराना नहीं... अब मैं तुम्हारे पास गया हूँ, सब ठीक हो जाएगा।”

    आम के दरख़्त ने बड़े प्यार से गुड्डू मियाँ की तरफ़ देखा उनकी मासूम बातों को सुना, और फिर बोला, “दोस्त मैं तो जड़ ही से टूट गया हूँ। तुम मेरी फ़िक्र करो... अब मेरा ईलाज ना-मुमकिन है!”

    गुड्डू मियाँ बोले, “दोस्त तुम ऐसी बातें करो। मैं तुम्हारा ईलाज कराऊँगा। अपने अब्बा जान से कह कर डाक्टर को बुलवाउंगा। तुम बहुत जल्द अच्छे हो जाओगे। फिर हम दोनों ख़ूब मज़े करेंगे।”

    दरख़्त ने कहा, “गुड्डू मियाँ अब मेरा ईलाज किसी डाक्टर के पास नहीं है। मैं तो जड़ ही से टूट गया हूँ ना!”

    ये सुन कर गुड्डू मियाँ रोने लगे। दरख़्त ने अपनी ज़ख़्मी टहनियों से उनके आँसू पूछे और फिर कहना शुरू किया, “देखो दोस्त तुम रोना नहीं... तुम तो जानते हो मुझे तुम्हारे दादा-जान ने लगवाया था। अब तुम्हारे दादा-जान तो रहे नहीं, लेकिन तुम हो, आज तुम छोटे हो, कल बड़े हो जाओगे और फिर एक रोज़ तुम भी किसी के दादा-जान बनोगे। तुम्हारा भी एक नन्हा-मुन्ना प्यारा-प्यारा पोता होगा और जब वो भी तुम्हारी तरह आँगन में खेलने आएगा और अपने आँगन को इस क़दर सूना-सूना देखेगा तो क्या वो उदास नहीं हो जाएगा? तुम ही सोचो वो किस के साथ खेलेगा? कौन उसे गर्मी से बचाएगा? कौन उसे ठंडी-ठंडी हवाएँ देगा? मीठे-मीठे आम खिलाएगा? वो कहाँ झूला झूलेगा? गुड्डू मियाँ... तुम मेरा ईलाज करवाना चाहते हो ना? अब मेरी बातें ग़ौर से सुनो...”

    गुड्डू मियाँ बोले, “दोस्त मैं सुन रहा हूँ तुम बोलते जाओ।”

    आम के दरख़्त ने मुहब्बत भरी नज़रों से उनकी तरफ़ देखा और फिर दुबारा कहना शुरू किया, “दोस्त तुम आज ही मेरी एक गुठली अपने दादा-जान की तरह ज़मीन में बो दो... उसे रोज़ पानी देते रहो, मैं फिर एक बार आहिस्ता-आहिस्ता तुम्हारे आँगन में बढ़ने लगूँगा और फिर एक रोज़ ऐसा आएगा कि मैं ख़ूब बड़ा हो जाऊँगा और फिर सारी बहारें तुम्हारे आँगन में जाएँगी।”

    इतना कह कर दरख़्त ख़ामोश हो गया। गुड्डू मियाँ फ़ौरन अपनी जगह से उठे। आम की एक गुठली ली, और उसे बो दिया और फिर बेचैनी से अपने दोस्त की आमद का इंतिज़ार करने लगे।

    स्रोत:

    (Pg. 7)

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