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जादू की केतली

अफ़सर मेरठी

जादू की केतली

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    जापान में ये ख़्याल आम है कि भूत-प्रेत अक्सर बिल्ली, लोमड़ी या बिज्जू की शक्ल में फिरा करते हैं। बिल्ली और लोमड़ी वाले भूत तो ख़तरनाक समझे जाते हैं लेकिन बिज्जू वाला भूत किसी को सताता नहीं बल्कि वो हल्की-फुल्की शरारतें कर के लोगों का दिल बहलाता है और उन्हें ख़ुश करता और हँसाता है।

    अक्सर ऐसा हुआ है कि किसी सुनसान सड़क से गुज़रने वाले मुसाफ़िर के कानों में पास के जंगल से ढोल बजने की आवाज़ें आने लगीं और जब मुसाफ़िर ने वहाँ जा कर देखा तो मालूम हुआ कि बिज्जू साहब अपने पिछले पैरों पर खड़े हुए शोर मचा रहे हैं, बेचारा मुसाफ़िर घबरा कर भागा और बिज्जू साहब क़हक़हा लगा कर हंस पड़े।

    अब सुनो... एक था किसी मंदिर का पुरोहित और उसके पास थी एक ताँबे की केतली। उस केतली में पानी गर्म कर के वो चाय बनाया करता था। एक दिन जो वो चाय बनाने के लिए केतली उठाने चला तो देखता क्या है कि केतली में से एक सर झाँक रहा है और उसकी टोंटी में से बिज्जू के दो हाथ निकले हुए हैं पुरोहित ग़रीब बहुत डरा और अपनी झोंपड़ी की तरफ़ भागा मुँह फेर कर देखा तो वो केतली भी झूमती हुई उसके पीछे-पीछे चली रही थी।

    पुरोहित जल्दी से भाग कर अपनी कुटी में घुस गया और अंदर से किवाड़ बंद कर लिए। फिर उसे अपनी केतली में से क़हक़हों की आवाज़ सुनाई दी थोड़ी देर बाद जब पुरोहित ने झाँका तो केतली ज़मीन पर रखी हुई थी और सर और हाथ सब ग़ायब थे। पुरोहित कुटी से निकला और डरते-डरते केतली को उठाया और उसे एक बक्स के अंदर बंद दिया।

    अगले दिन एक ठटेरा उस गाँव से गुज़रा जहाँ पुरोहित रहता था पुरोहित ने सोचा लाओ इसके हाथ वो केतली बेच क्यों डालें, ऐसी चीज़ घर में नहीं रखनी चाहिए, ख़ुदा जाने क्या नुक़्सान पहुँचा दे, जब ठटेरा उसकी तरफ़ आया तो पुरोहित ने वो केतली उसे दिखाई और औने-पौने दामों में उसके हाथ फ़रोख़्त कर दी।

    उधर ठटेरा चंद टकों में इतनी उम्दा केतली लेकर बहुत ख़ुश हुआ, इधर पुरोहित सोचने लगा कि आज ठटेरे को ख़ूब उल्लू बनाया।

    केतली पर तो तुम जानो बिज्जू का क़बज़ा था ही, वो भला कब अपनी हरकतों से बाज़ आने वाला था, रात को जब ठटेरा सो रहा था तो उस बोरे में से जिसमें उसने केतली रख छोड़ी थी तरह-तरह की आवाज़ें निकलनी शुरू हुईं। ठटेरे की आँख खुल गई, वो बहुत हैरान हुआ कि ये आवाज़ें कैसी हैं। उठ कर बोरे को खोला तो वो पुरोहित वाली केतली बोरे से निकल कर नाचने लगी। केतली के मुँह में से बिज्जू का मुँह और उसकी टोंटी में से उसके दोनों हाथ निकले थे।

    ठटेरा ये तमाशा देख कर डरा नहीं बल्कि वो बिज्जू की हरकतों पर बहुत हंसा, फिर उसे ख़्याल आया कि ये तो बड़ी दिलचस्प चीज़ है, ऐसी अजीब केतली किस ने देखी होगी, लाओ इसका नाम जादू की केतली रख दें और इसका तमाशा दिखा कर रुपय कमाएँ। ठटेरे के काम में तो कुछ पल्ले नहीं पड़ता, केतली के तमाशे से पेट भर खाना तो मिल जाया करेगा।

    आख़िर ठटेरे ने बिज्जू केतली को तरह-तरह के हँसने-हंसाने वाले करतब सिखा कर फेरी लगानी शुरू की, इस केतली का तमाशा जो देखता हंसते-हंसते लौट जाता।

    ठटेरा दूर-दूर मशहूर हो गया, उसका तमाशा लोग बड़े शौक़ से देखते थे, जहाँ जाता हज़ारों आदमियों की भीड़ लग जाती, उसकी बिज्जू केतली करतब दिखाती रस्सी पर चलती, दरख़्तों पर चढ़ती वहाँ से कूदती और जापानी गत्तों पर नाचती। नवाबों और राजाओं की तरफ़ से उसको बुलावे आने लगे और वो बड़े-बड़े महलों और हवेलियों में जा कर अपनी मशहूर केतली का तमाशा दिखाने लगा।

    होते-होते ठटेरा ख़ुश-हाल हो गया और बहुत आराम और आसाइश से ज़िंदगी बसर करने लगा और काफ़ी रूपया उसने जमा कर लिया। अब उसे केतली लिए फिरना और घर-घर के फेरे लगाना अच्छा नहीं मालूम होता था। आख़िर ठटेरे ने, ताँबे-पीतल के बर्तनों की एक बड़ी सी दुकान ली।

    बाज़ीगरी का पेशा तर्क करने के बाद भी ठटेरा केतली से दिल बहलाया करता था। उसे केतली वाले बिज्जू से मुहब्बत थी। बिज्जू उसके इशारों पर चलता था। मगर केतली के खेल धंदों में लगे रहने से उसका वक़्त बहुत ज़ाया होता था और दुकान की देख-भाल वो ठीक तरीक़े से नहीं कर सकता था। आख़िर मजबूर हो कर उसने ये फ़ैसला कर लिया कि इस केतली को उस पुरोहित के सुपुर्द कर देना चाहिए जिससे इसे ख़रीदा था, वो उसे वापस लेकर बहुत ख़ुश होगा।

    पुरोहित अपनी केतली की शोहरत बहुत दिन से सुन रहा था और सोचा करता था कि मैं ख़्वाह-म-ख़्वाह बिज्जू से डर गया, बिज्जू किसी को सताता नहीं है बल्कि अपनी हरकतों से सबको हँसाता है, मैंने बड़ी ग़लती की कि वो केतली इतनी सस्ती बेच डाली।

    ठटेरा जब केतली लेकर पहुँचा तो

    पुरोहित बहुत ख़ुश हुआ, उसने केतली हासिल कर के ठटेरे का बहुत शुक्रिया अदा किया और ठटेरे को उसके दाम वापस देने लगा। मगर ठटेरे ने कहा कि, “मैं दाम वापस नहीं लूँगा, मैंने इस केतली से बहुत रूपया कमाया और एक दुकान भी खोल ली जो उम्र-भर के लिए मेरी गुज़र-बसर का ज़रिया बनी रहेगी, ये केतली तो मैं आपको ब-तौर-तोहफ़े के पेश करने आया हूँ।”

    मगर इस मर्तबा पुरोहित के पास कर केतली हर दूसरी केतली की तरह पानी गर्म करने का एक बर्तन रह गई, वो अब नाचती थी करतब दिखाती थी खेलती-कूदती थी। बिज्जू को ठटेरा पसंद था, पुरोहित नहीं।

    स्रोत:

    Japani Kahaniyan (Pg. 39)

      • प्रकाशक: उत्तर प्रदेश उर्दू अकेडमी, लखनऊ
      • प्रकाशन वर्ष: 1981

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