aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

सूत का रेशम

इस्मत चुग़ताई

सूत का रेशम

इस्मत चुग़ताई

MORE BYइस्मत चुग़ताई

    नन्हे भाई हमें कितनी बार ही बेवक़ूफ़ बनाते, मगर हमको आख़िर में कुछ ऐसा क़ाइल कर दिया करते थे कि उन पर से ए‘तिबार उठता। मगर एक वाक़ेए ने तो हमारी बिल्कुल ही कमर तोड़ दी। जाने क्यों बैठे बिठाए जो आफ़त आई तो पूछ बैठे,

    ‘‘नन्हे भाई! ये रेशम कैसे बनता है?’’

    ‘‘अरे बुद्धू! ये भी नहीं मालूम, रेशम कैसे बनता है! इसमें मुश्किल ही क्या है? सादा सूती धागा लो। उसे दो पलंगों के पाए पर ऐसा तान दो जैसे पतंग का माँझा तानते हैं बस जनाब-ए-आली! अब एक या दो हस्ब-ए-ज़रूरत अंडे ले लो। उनकी ज़र्दी अलग कर लो, उन्हें ख़ूब काँटे से फेंटो, अच्छा नमक-मिर्च डाल कर, आमलेट बना कर हमें खिलाओ, समझें?’’

    ‘‘हाँ आँ। मगर रेशम?’’

    ‘‘चे। बे वक़ूफ़! अब सुनो तो आगे। बाक़ी बची सफ़ेदी, उसे लेकर इतना फेंटो। इतना फेंटो कि वो फूल कर कुप्पा हो जाए। बस जनाब अब ये सफ़ेदी बड़ी एहतियात से पलंग के पायों पर तने हुए तागे पर लगा दो। जब सूख जाए, सँभाल के उतार कर उसका गोला बना लो, आप चाहे उसके रेशम से साड़ियाँ बिनो, चाहे क़मीसें बनाओ।’’

    ‘‘अरे बाप रे!’’ हमने सोचा। रेशम बनाना इतना आसान है और हम अब तक बुद्धू ही थे, जो अम्माँ से रेशमी कपड़ों के लिए फ़रमाइश करते रहे। अरे हम ख़ुद इतना ढ़ेरों रेशम बना सकते हैं तो हमें क्या ग़रज़ पड़ी है, जो किसी की जूतियाँ चाटते फिरें।

    बस साहब, उसी वक़्त एक अंडा मुहय्या किया गया। ताज़ा-ताज़ा काली मुर्ग़ी डरबे में दे कर उठी और हमने झपट लिया। फ़ौरन नुस्ख़ा पर ‘अमल किया गया, यानी ज़र्दी का आमलेट बना कर ख़ुद खा लिया, क्योंकि नन्हे भाई नहीं थे उस वक़्त। अब सवाल ये पैदा हुआ कि तागा कहाँ से आए? ज़ाहिर है कि तागा सिर्फ़ आपा की सीने-पिरोने वाली संदूक़ची में ही मिल सकता था। सख़्त मरखन्नी थीं आपा। मगर हमने सोचा, नर्म-नर्म रेशम की लच्छियों से वो ज़रूर नर्म हो जाएँगी। क्या है, हम भी आज उन्हें ख़ुश ही क्यों कर दें। बहुत नालाँ रहती हैं हमसे, बद-क़िस्मती से वो हमें अपना दुश्मन समझ बैठी हैं। आज हम उन्हें शर्मिंदा करके ही छोड़ेंगे। वो भी क्या याद करेंगी कि किस क़दर फ़स्ट-क्लास बहन अल्लाह पाक ने उन्हें बख़्शी है। जिसने सूत का रेशम बना दिया।

    आपा जान सो रही थीं और हम दिल ही दिल में सोच रहे थे कि रेशम की मलाई लच्छियाँ देख कर आपा भी रेशम का लच्छा हो जाएँगी और फिर हमें कितना प्यार करेंगी।

    सख़्त चिप-चिपा और बदबूदार था रेशम बनाने का ये मसाला। नातजुर्बा-कारी की वजह से आधा तागा तो उलझ कर बेकार हो गया। मगर हमने भी आज तय कर लिया था कि अपनी क़ाबिलियत का सिक्का जमा कर चैन लेंगे।

    लिहाज़ा आपा की संदूक़ची में से हमने सारी की सारी रंग-बिरंगी सूती और रेशमी रीलें लेकर दो पलंगों के दरमियान तान दीं कि रेशम तो और चमकदार हो जाएगा। सूत रेशम हो जाएगा। अब हमने अंडे की फेंटी हुई सफ़ेदी से ताने हुए तागे पर ख़ूब गुस्से देने शुरू किए।

    इतने में आपा जान आँखें मलती और जमाइयाँ लेती हुई हमारे सर पर आन धमकीं। थोड़ी देर तो वो भौंचक्की सी खड़ी ये सारा तमाशा देखती रहीं।

    फिर बोलीं, ‘‘ये... ये क्या... कर रही है। मर्दी?’’ उन्होंने ब-वक़्त आवाज़ हलक़ से निकाली।

    ‘‘रेशम बना रहे हैं!’’ हमने निहायत ग़ुरूर से कहा और फिर नुस्ख़े की तफ़सील बताई।

    और फिर घर में वही क़यामत-ए-सुग़रा गई जो उमूमन हमारी छोटी-मोटी हरकतों पर जाने की आदी हो चुकी थी। ना-शुक्री आपा ने हमारी सख़्त पिटाई की।

    घर में सब ही बुज़ुर्गों ने दस्त-ए-शफ़क़त फेरा, ‘‘रेशम बनाने चली थीं!’’

    ‘‘अपने कफ़न के लिए रेशम बना रही थी चुड़ैल।’’

    लोगों ने ज़िंदगी दूभर कर दी, क्यों कि वाक़ई रेशम बुनने के बजाए तागा, बर्तन माँझने का जूना बन गया।

    हमने जब नन्हे भाई से शिकायत की तो बोले, ‘‘कुछ कसर रह गई होगी... अंडा बासी होगा।’’

    ‘‘नहीं, ताज़ा था, उसी वक़्त काली मुर्ग़ी दे कर गई थी।’’

    ‘‘काली मुर्ग़ी का अंडा? पगली कहीं की। काली मुर्ग़ी के अंडे से कहीं रेशम बनता है?’’

    ‘‘तो फिर...?’’ हमने अहमक़ों की तरह पूछा।

    ‘‘सफ़ेद झक मुर्ग़ी का अंडा होना चाहिए।’’

    ‘‘अच्छा?’’

    ‘‘और क्या और आमलेट तुम ख़ुद निगल गईं। हमें खिलाना चाहिए था।’’

    ‘‘तब रेशम बन जाता?’’

    ‘‘और क्या!’’ भैया ने कहा और हम सोचने लगे। सफ़ेद मुर्ग़ी कम-बख़्त कुड़ुक है, अंडों पर बैठी है। जाने कब अंडे देने शुरू करेगी। ख़ैर देखा जाएगा। एक दिन आपा को हमें मारने पर पछताना पड़ेगा। जब हम सारा घर रेशम की नर्म-नर्म लच्छियों से भर देंगे तो शर्म से आपा का सर झुक जाएगा और वो कहेंगी, प्यारी बहन मुझे माफ़ कर दे तू तो सच-मुच हीरा है।

    तो बच्चो, अगर तुम भी रेशम बनाना चाहते हो तो नुस्ख़ा याद रखो। अंडा सफ़ेद मुर्ग़ी का हो। अगर फ़िलहाल वो कुड़ुक है तो इंतिज़ार करो और ज़र्दी का आमलेट नन्हे भाई को खिलाना। ख़ुद हरगिज़-हरगिज़ खाना, वरना मंत्र उल्टा पड़ जाएगा और हालात निहायत भोंडी सूरत अख़्तियार कर लेंगे। फिर हमें दोष देना।

    संबंधित टैग

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए