Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

सआदत हसन मंटो के 50 लोकप्रिय उद्धरण

उर्दू के महान कथाकार

सआदत हसन मंटो ने अपने सुंदर लेखन से बेशुमार पाठकों को आकर्षित किया है। यहाँ आपके लिए मंटो की तहरीरों से लिए गए 50 मशहूर और लोकप्रिय उद्धरणों को सावधानीपूर्वक एकत्र किया जो यक़ीनन आपको पसंद आएंगे और जीवन को समझने के आपके नज़रिये को एक नया रुख देंगे।

26.3K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

कोई अफ़साना या अदब-पारा फ़ोह्श नहीं हो सकता। जब तक लिखने वाले का मक़सद अदब-निगारी है। अदब ब-हैसीयत-ए-अदब के कभी फ़ोह्श नहीं होता।

सआदत हसन मंटो

दिल ऐसी शैय नहीं जो बाँटी जा सके।

सआदत हसन मंटो

दुनिया में जितनी लानतें हैं, भूक उनकी माँ है।

सआदत हसन मंटो

मौजूदा निज़ाम के तहत जिसकी बागडोर सिर्फ़ मर्दों के हाथ में है, औरत ख़्वाह वो इस्मत फ़रोश हो या बा-इस्मत, हमेशा दबी रही है। मर्द को इख़्तियार होगा कि वो उसके मुताल्लिक़ जो चाहे राय क़ायम करे।

सआदत हसन मंटो

हर हसीन चीज़ इन्सान के दिल में अपनी वक़्अत पैदा कर देती है। ख़्वाह इन्सान ग़ैर-तरबियत-याफ़्ता ही क्यों ना हो?

सआदत हसन मंटो

मैं बग़ावत चाहता हूँ। हर उस फ़र्द के ख़िलाफ़ बग़ावत चाहता हूँ जो हमसे मेहनत कराता है मगर उसके दाम अदा नहीं करता।

सआदत हसन मंटो

हमारे अफ़सानवी अदब में जिन औरतों का ज़िक्र किया गया है, उनमें से अस्सी फ़ीसदी ऐसी हैं जो हक़ीक़त से कोसों दूर हैं। उनमें और असल औरतों में वही फ़र्क़ है, जो टकसाली रुपये और जाली रुपये में होता है।

सआदत हसन मंटो

पहले मज़हब सीनों में होता था आजकल टोपियों में होता है। सियासत भी अब टोपियों में चली आई है। ज़िंदाबाद टोपियाँ।

सआदत हसन मंटो

अगर मैं किसी औरत के सीने का ज़िक्र करना चाहूँगा तो उसे औरत का सीना ही कहूँगा। औरत की छातियों को आप मूंगफ़ली, मेज़ या उस्तुरा नहीं कह सकते... यूँ तो बाअज़ हज़रात के नज़दीक औरत का वुजूद ही फ़ोह्श है, मगर उसका क्या ईलाज हो सकता है?

सआदत हसन मंटो

याद रखिए वतन की ख़िदमत शिकम-सेर लोग कभी नहीं कर सकेंगे। वज़्नी मेअ्दे के साथ जो शख़्स वतन की ख़िदमत के लिए आगे बढ़े, उसे लात मार कर बाहर निकाल दीजिए।

सआदत हसन मंटो

ज़माने के जिस दौर से हम इस वक़्त गुज़र रहे हैं अगर आप इससे नावाक़िफ़ हैं तो मेरे अफ़साने पढ़िये। अगर आप इन अफ़्सानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इस का मतलब है कि ये ज़माना नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त है... मुझ में जो बुराईयाँ हैं, वो इस अह्द की बुराईयां हैं... मेरी तहरीर में कोई नक़्स नहीं। जिस नक़्स को मेरे नाम से मंसूब किया जाता है, दर असल मौजूदा निज़ाम का नक़्स है।

सआदत हसन मंटो

जिस तरह जिस्मानी सेहत बरक़रार रखने के लिए कसरत की ज़रूरत है, ठीक उसी तरह ज़हन की सेहत बरक़रार रखने के लिए ज़हनी वरज़िश की ज़रूरत है।

सआदत हसन मंटो

पब्लिक ऐसी फिल्में चाहती हैं जिनका ताल्लुक़ बराह-ए-रास्त उनके दिल से हो। जिस्मानी हिसिय्यात से मुताल्लिक़ चीज़ें ज़ियादा देरपा नहीं होतीं मगर जिन चीज़ों का ताल्लुक़ रूह से होता है, देर तक क़ायम रहती हैं।

सआदत हसन मंटो

मुझे नाम निहाद कम्यूनिस्टों से बड़ी चिड़ है। वो लोग मुझे बहुत खलते हैं जो नर्म-नर्म सोफ़ों पर बैठ कर दरांती और हथौड़े की ज़र्बों की बातें करते हैं।

सआदत हसन मंटो

हसीन चीज़ एक दायमी मुसर्रत है। आर्ट जहां भी मिले हमें उसकी क़दर करनी चाहिए।

सआदत हसन मंटो

आप शहर में ख़ूबसूरत और नफ़ीस गाड़ियाँ देखते हैं... ये ख़ूबसूरत और नफ़ीस गाड़ियाँ कूड़ा करकट उठाने के काम नहीं सकतीं। गंदगी और ग़लाज़त उठा कर बाहर फेंकने के लिए और गाड़ियाँ मौजूद हैं जिन्हें आप कम देखते हैं और अगर देखते हैं तो फ़ौरन अपनी नाक पर रूमाल रख लेते हैं... इन गाड़ियों का वुजूद ज़रूरी है और उन औरतों का वुजूद भी ज़रूरी है जो आपकी ग़लाज़त उठाती हैं। अगर ये औरतें ना होतीं तो हमारे सब गली कूचे मर्दों की ग़लीज़ हरकात से भरे होते।

सआदत हसन मंटो

वेश्या का वजूद ख़ुद एक जनाज़ा है जो समाज ख़ुद अपने कंधों पर उठाए हुए है। वो उसे जब तक कहीं दफ़्न नहीं करेगा, उसके मुताल्लिक़ बातें होती रहेंगी।

सआदत हसन मंटो

मैं अफ़्साना इसलिए लिखता हूँ कि मुझे अफ़्साना-निगारी की शराब की तरह लत पड़ गई है। मैं अफ़्साना ना लिखूँ तो मुझे ऐसा महसूस होता है कि मैंने कपड़े नहीं पहने, या मैंने ग़ुस्ल नहीं किया, या मैंने शराब नहीं पी।

सआदत हसन मंटो

मज़हब ख़ुद एक बहुत बड़ा मस्अला है, अगर इस में लपेट कर किसी और मस्अले को देखा जाए तो हमें बहुत ही मग़्ज़-दर्दी करनी पड़ेगी।

सआदत हसन मंटो

मैं तहज़ीब-ओ-तमद्दुन और सोसाइटी की चोली क्या उतारुंगा जो है ही नंगी।

सआदत हसन मंटो

वेश्या अपनी तारीक तिजारत के बावजूद रौशन रूह की मालिक हो सकती है।

सआदत हसन मंटो

वेश्या पैदा नहीं होती, बनाई जाती है, या ख़ुद बनती है।

सआदत हसन मंटो

अगर एक ही बार झूट बोलने और चोरी करने की तलक़ीन करने पर सारी दुनिया झूट और चोरी से परहेज़ करती तो शायद एक ही पैग़ंबर काफ़ी होता।

सआदत हसन मंटो

वेश्या और बा-इस्मत औरत का मुक़ाबला हर्गिज़-हर्गिज़ नहीं करना चाहिए। इन दोनों का मुक़ाबला हो ही नहीं सकता। वेश्या ख़ुद कमाती है और बा-इस्मत औरत के पास कमा कर लाने वाले कई मौजूद होते हैं।

सआदत हसन मंटो

औरत हाँ और ना का एक निहायत ही दिलचस्प मुरक्कब है। इन्कार और इक़रार कुछ इस तरह औरत के वुजूद में ख़ल्त-मल्त हो गया है कि बाअज़ औक़ात इक़रार-इन्कार मालूम होता है और इन्कार-इक़रार।

सआदत हसन मंटो

याद रखिए ग़ुर्बत लानत नहीं है जो उसे लानत ज़ाहिर करते हैं वो ख़ुद मल्ऊन हैं। वो ग़रीब उस अमीर से लाख दर्जे बेहतर है जो अपनी कश्ती ख़ुद अपने हाथों से खेता है...

सआदत हसन मंटो

मैं अदब और फ़िल्म को एक ऐसा मय-ख़ाना समझता हूँ, जिसकी बोतलों पर कोई लेबल नहीं होता।

सआदत हसन मंटो

लीडर जब आँसू बहा कर लोगों से कहते हैं कि मज़हब ख़तरे में है तो इसमें कोई हक़ीक़त नहीं होती। मज़हब ऐसी चीज़ ही नहीं कि ख़तरे में पड़ सके, अगर किसी बात का ख़तरा है तो वो लीडरों का है जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए मज़हब को ख़तरे में डालते हैं।

सआदत हसन मंटो

हिन्दुस्तान को उन लीडरों से बचाओ जो मुल्क की फ़िज़ा बिगाड़ रहे हैं और अवाम को गुमराह कर रहे हैं।

सआदत हसन मंटो

हिन्दुस्तान में सैकड़ों की तादाद में अख़्बारात-ओ-रसाइल छपते हैं मगर हक़ीक़त ये है कि सहाफ़त इस सरज़मीन में अभी तक पैदा ही नहीं हुई है।

सआदत हसन मंटो

मेरा ख़्याल है कि कोई भी चीज़ फ़ोह्श नहीं, लेकिन घर की कुर्सी और हांडी भी फ़ोह्श हो सकती है अगर उनको फ़ोह्श तरीक़े पर पेश किया जाए।

सआदत हसन मंटो

जिस औरत के दरवाज़े शहर के हर उस शख़्स के लिए खुले हैं जो अपनी जेबों में चाँदी के चंद सिक्के रखता हो। ख़्वाह वो मोची हो या भंगी, लंगड़ा हो या लूला, ख़ूबसूरत हो या करीहत-उल-मंज़र, उस की ज़िंदगी का अंदाज़ा ब-ख़ूबी लगाया जा सकता है।

सआदत हसन मंटो

गदागरी क़ानूनन बंद कर दी जाती है, मगर वो अस्बाब-ओ-एलल दूर करने की कोशिश नहीं की जाती जो इन्सान को इस फे़अल पर मजबूर करते हैं। औरतों को सर-ए-बाज़ार जिस्म-फ़रोशी के कारोबार से रोका जाता है मगर उस के मुहर्रिकात के इस्तीसाल की तरफ़ कोई तवज्जाेह नहीं देता।

सआदत हसन मंटो

मैं तो बाज़-औक़ात ऐसा महसूस करता हूँ कि हुकूमत और रिआया का रिश्ता रूठे हुए ख़ावंद और बीवी का रिश्ता है।

सआदत हसन मंटो

आदमी या तो आदमी है वरना आदमी नहीं है, गधा है, मकान है, मेज़ है, या और कोई चीज़ है।

सआदत हसन मंटो

भूक किसी क़िस्म की भी हो, बहुत ख़तरनाक है।

सआदत हसन मंटो

अगर हम साबुन और लैविन्डर का ज़िक्र कर सकते हैं तो उन मौर्यों और बदरुओं का ज़िक्र क्यों नहीं कर सकते जो हमारे बदन का मैल पीती हैं। अगर हम मंदिरों और मस्जिदों का ज़िक्र कर सकते हैं तो उन क़हबा-ख़ानों का ज़िक्र क्यों नहीं कर सकते जहाँ से लौट कर कई इन्सान मंदिरों और मस्जिदों का रुख़ करते हैं... अगर हम अफ़्यून, चरस, भंग और शराब के ठेकों का ज़िक्र कर सकते हैं तो उन कोठों का ज़िक्र क्यों नहीं कर सकते जहाँ हर क़िस्म का नशा इस्तिमाल किया जाता है।

सआदत हसन मंटो

सियासत और मज़हब की लाश हमारे नामवर लीडर अपने कँधों पर उठाए फिरते हैं और सीधे सादे लोगों को जो हर बात मान लेने के आदी होते हैं ये कहते फिरते हैं कि वो इस लाश को अज़ सर-ए-नौ ज़िंदगी बख़्श रहे हैं।

सआदत हसन मंटो

जिस्म दाग़ा जा सकता है मगर रूह नहीं दाग़ी जा सकती।

सआदत हसन मंटो

ये लोग जिन्हें उर्फ़-ए-आम में लीडर कहा जाता है, सियासत और मज़हब को लंगड़ा, लूला और ज़ख़्मी आदमी तसव्वुर करते हैं।

सआदत हसन मंटो

हमें अपने क़लम से रोज़ी कमाना है और हम इस ज़रिये से रोज़ी कमा कर रहेंगे। ये हर्गिज़ नहीं हो सकता कि हम और हमारे बाल बच्चे फ़ाक़े मरें और जिन अख़बारों और रिसालों में हमारे मज़ामीन छपते हैं, उनके मालिक ख़ुशहाल रहें।

सआदत हसन मंटो

मर्द का तसव्वुर हमेशा औरतों को इस्मत के तने हुए रस्से पर खड़ा कर देता है।

सआदत हसन मंटो

ये लोग जो अपने घरों का निज़ाम दरुस्त नहीं कर सकते, ये लोग जिनका कैरेक्टर बेहद पस्त होता है, सियासत के मैदान में अपने वतन का निज़ाम ठीक करने और लोगों को अख़लाक़ियात का सबक़ देने के लिए निकलते हैं... किस क़दर मज़हका-ख़ेज़ चीज़ है!

सआदत हसन मंटो

ज़बान बनाई नहीं जाती, ख़ुद बनती है और ना इन्सानी कोशिशें किसी ज़बान को फ़ना कर सकती हैं।

सआदत हसन मंटो

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए