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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : मजनूँ गोरखपुरी

V4EBook_EditionNumber : 002

प्रकाशक : क़ुतुब ख़ाना दानिश महल, लखनऊ

प्रकाशन वर्ष : 1944

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शोध एवं समीक्षा

उप श्रेणियां : आलोचना

पृष्ठ : 175

सहयोगी : ग़ालिब अकेडमी, देहली

adab aur zindagi
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पुस्तक: परिचय

مجنوں گورکھپوری کے چند تنقیدات کا مجموعہ ہے جن کو انہوں نے اپنے مقالات سے الگ کر کے اس لئے شایع کرایا کہ حال میں لکھے گئے تھے اور ان کو ترتیب بار ہونا چاہئے تھا کیوں کہ ایک دوسرے سے منسلک ہیں ۔ ادب اور زندگی ، مبادیات تنقید، زندگی اور ادب کا بحرانی دور ، ادب اور ترقی، ہندوستانی ناٹک، نظیر اکبرآبادی، حالی کا مرتبہ اردو میں۔ پھر اس میں دو مضامین کا مزید اضافہ کرکے دوسری بار شائع کیا گیا۔ یہ سارے مقالے نہایت ہی اہمیت کے حامل اور تنقیدی پہلو سے پر ہیں ۔ اس لئے انہوں نے ان مقالات کو اپنے دیگر مقالات سے علاحدہ کر کے چھپوایا ۔ ان کا مطالعہ کرنے سے قاری کا تنقیدی شعور بیدار ہوتا ہے اور اہم نکتوں سے شناسائی ہوتی ہے ۔

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लेखक: परिचय

मजनूं गोरखपुरी उर्दू के प्रसिद्ध आलोचक, शायर, अनुवादक और कहानीकार हैं, उन्होंने प्रगतिवादी साहित्य को आलोचना के स्तर पर  वैचारिक बुनियादें उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मजनूं का जन्म 10 मई 1904 को पिलवा उर्फ़ मुल्की जोत ज़िला बस्ती के एक ज़मींदार घराने में हुआ। मजनूं के पिता फ़ारूक़ दीवाना भी शायर थे और अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी में गणित के प्रोफ़ेसर थे। मजनूं की आरम्भिक शिक्षा मनझर गांव में हुई। आरम्भिक दिनों में ही अरबी, फ़ारसी और हिन्दी में दक्षता प्राप्त करली थी। दर्स-ए-निज़ामिया की शिक्षा पूरी करलेने के बाद बी.ए. तक की तालीम गोरखपुर, अलीगढ़ और इलाहाबाद में पूरी की। 1934  में आगरा यूनीवर्सिटी से अंग्रेज़ी में और 1935 में कलकत्ता यूनीवर्सिटी से उर्दू में एम.ए. किया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी में  शिक्षा-दीक्षा से संबद्ध हो गये।
मजनूं की सम्पूर्ण पहचान पर उनकी तन्क़ीदी शनाख़्त हावी रही। उन्होंने निरंतर अपने अह्द के अदबी-ओ-तन्क़ीदी मसाइल पर लिखा। मजनूं की आलोचना की किताबों के नाम ये हैं; अदब और ज़िंदगी, दोश व फ़रदा, नकात-ए-मजनूं, शे’र व ग़ज़ल, ग़ज़ल-सरा, ग़ालिब शख़्स और शायर शोपनहार, तारीख़-ए-जमालियात, परदेसी के ख़ुतूत, नुक़ूश व अफ़कार। मजनूं के कहानियों  के चार संग्रह भी प्रकाशित हुए; ख़्वाब व ख़्याल, समन पोश, नक़्श-ए-नाहीद, मजनूं के अफ़साने। उनके  अफ़साने उस दौर के यादगार हैं जिसमें नस्र लतीफ़ मक़बूल हो रही थी और अकलियत पसंदी के बजाय रूमानियत और भावात्मकता सृजनात्मक साहित्य की मुख्य प्रेरणा थी। मजनूं ने ऑस्कर वाइल्ड, टाल्स्टाय और मिल्टन की कुछ रचनाओं का उर्दू में तर्जुमा भी किया। मजनूं   की  नज़र  पश्चिमी साहित्य पर भी गहरी थी। 04 जून 1988 को कराची में देहांत हुआ।

 

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