Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

लेखक: परिचय

अज़ीज़ लखनवी की गिनती अपने दौर में उर्दू-फ़ारसी के कुछ बड़े विद्वानों में होती थी। उनका नाम मिर्ज़ा मुहम्मद हादी था। 14 मार्च 1882 को लखनऊ में पैदा हुए। उनके पूर्वज शीराज़ से हिन्दुस्तान आये थे, पहले कश्मीर में रहे, बाद में शाहान-ए-अवध के दौर-ए-हुकूमत में लखनऊ चले गये। अज़ीज़ का ख़ानदान ज्ञान ध्यान के लिए मशहूर था। अज़ीज़ ने आरम्भिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की। सात वर्ष के थे जब उनके पिता का देहांत हो गया लेकिन अपनी शिक्षा जारी रखी। अमीनाबाद हाईस्कूल में उर्दू व फ़ारसी पढ़ाई। बाद में वह अली मुहम्मद ख़ाँ महाराजा महबूदाबाद के बच्चों के संरक्षक नियुक्त हुए और आजीवन उसी से सम्बद्ध रहे।

अज़ीज़ ने विभिन्न विधाओं में रचना की। ग़ज़ल के अलावा नज़्म और क़सीदा उनके सृजनात्मक अभिव्यक्ति की महत्वपूर्ण विधाएं हैं। क़सीदे में वह एक विशेष पहचान रखते हैं। शिकोह-ए-अल्फ़ाज़, उलू तख़ैय्युल उनके क़सीदे की विशेषताएं हैं। शायरी में साक़ी लखनवी के शार्गिद थे।

अज़ीज़ लखनवी का यह शे’र इतना मशहूर हुआ कि एक तरह से यह उनकी पहचान बन गयाः

अपने मर्कज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था हुस्न
भूलता   ही   नहीं   आलम  तेरी  अंगड़ाई  का


.....और पढ़िए
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

लेखक की अन्य पुस्तकें

लेखक की अन्य पुस्तकें यहाँ पढ़ें।

पूरा देखिए

लोकप्रिय और ट्रेंडिंग

सबसे लोकप्रिय और ट्रेंडिंग उर्दू पुस्तकों का पता लगाएँ।

पूरा देखिए

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए