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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : मुईन अहसन जज़्बी

V4EBook_EditionNumber : 001

प्रकाशक : सरफ़राज़ क़ाैमी प्रेस, लखनऊ

प्रकाशन वर्ष : 1959

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शोध एवं समीक्षा

उप श्रेणियां : आलोचना

पृष्ठ : 204

सहयोगी : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द), देहली

hali ka siyasi shuoor
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पुस्तक: परिचय

حالی کی شاعری اور نثر نگاری سے ان کی سیاسی نظریات بھی صاف عیاں ہیں۔ پیش نظر کتاب بعنوان" حالی کا سیاسی شعور" میں جذبی نے کلام حالی سے ان کے سیاسی نظریات کو پیش کیا ہے۔جس کے تحت جذبی نے حالی کے سیاسی خیالات کو سرسید کے خیالات کی صدائے باز گشت قرار دیا ہے۔اس کے علاوہ مصنف نے اٹھارویں صدی کے ابتدا سے پہلی جنگ عظیم تک تقریبا دو سو سال کی ہندوستانی سیاست کا جائزہ لیتے ہوئے حالی کی سیاسی شعور کی نشوونما پر روشنی ڈالی ہے۔اس کتاب کی ایک خوبی مصنف کی سیدھی سادی زبان اور دلکش انداز بیان ہے۔جو قارئین کی توجہ خود بہ خود اپنی جانب مبذول کرلیتی ہے۔

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लेखक: परिचय

मुईन अहसन जज़्बी की गिनती मशहूर प्रगतिशील शाइरों में होती है. लेकिन आंदोलन और उसके अदबी व सामाजिक विचारधारा से जज़्बी की सम्बद्धता विभन्न स्तरों पर थी. वह उन प्रगतिवादियों में से नहीँ थे जिनकी कला वैचारिक प्रोपगेंडे में आहूत होगयी. जज़्बी की शिक्षा क्लासिकी काव्य परम्परा की छाया में हुई थी इसलिए वह अदब में प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति के बजाय परोक्ष और सांकेतिक अभिव्यक्ति पर ज़ोर देते थे. जज़्बी ने नज़्में भी कहीं लेकिन उनकी स्रजनात्मक अभिव्यक्ति की मूल विधा ग़ज़ल ही रही. उनकी ग़ज़लें नये सामाजिक और इन्क़लाबी चेतना के साथ क्लासिकी रचाव से भरपूर हैं.
मुईन अहसन जज़्बी की पैदाइश 21 अगस्त 1912 को मुबारकपुर आज़मगढ़ में हुई. वहीँ उन्होंने हाईस्कूल का इम्तिहान पास किया. सेंट् जोंस कालेज आगरा से 1931 में इंटर किया और एंग्लो अरबिक कालेज से बी.ए. किया. जज़्बी नौ साल की उम्र से शे’र कहने लगे थे. आरम्भ में हामिद शाहजहांपुरी से अपने कलाम की त्रुटियाँ ठीक कराईं. आगरा में मजाज़, फ़ानी बदायुनी और मैकश अकबराबादी से मुलाक़ातें रहीं जिसके कारण जज़्बी की स्रजनात्मक क्षमता निखरती रही. लखनऊ प्रवास के दौरान अली सरदार जाफ़री और सिब्ते हसन से नज़दीकी ने उन्हें साहित्य के प्रगतिवादी विचारधारा से परिचय कराया जिसके बाद जज़्बी अलीगढ़ में एम.ए. के दौरान आंदोलन के सक्रिय सदस्यों में गिने जाने लगे. एम.ए. करने के बाद कुछ अर्से तक जज़्बी ने माहनामा ‘आजकल’ में सहायक सम्पादक के रूप में अपनी सेवाएँ दीं. 1945 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के रूप में नियुक्ति होगयी जहाँ वह अंतिम समय तक विभन्न पदों पर रहे.
मुईन अहसन जज़्बी ने शाइरी के अलावा आलोचना की कई अहम किताबें भी लिखीं. ‘हाली का सियासी शुऊर’ पर उन्हें डॉक्टरेट की डिग्री भी मिली और यह किताब हाली अध्ययन में एक संदर्भ ग्रंथ के रूप में भी स्वीकार की गयी. इसके अतिरिक्त ‘फ़ुरोज़ां’, ‘सुखन-ए-मुख्तसर’ और ‘गुदाज़ शब’ उनके काव्य संग्रह 
हैं. 13 फ़रवरी 2005 को जज़्बी का देहांत हुआ.

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