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पुस्तक: परिचय

"جب کشمیر جل رہا تھا" کشمیری لال ذاکر کے افسانوں کا مجموعہ ہے۔ جس کے متعلق بلونت سنگھ رقم طراز ہیں۔ "جب کشمیر جل رہا تھا، ایک ایسے ادیب کے افسانوں کا مجموعہ ہے۔ جو ہند یونین کا باشندہ ہے۔۔۔۔ اس کتاب کے تعارف میں ذاکر کی افسانہ نگاری کے سارے محاسن بیان نہیں ہوسکیں گے کیونکہ سب کے سب افسانے (تمثیلیں ) ایک ہی موضوع پر لکھے گئے ہیں۔ اور تقریبا ایک ہی کیفیت کے حامل ہیں۔۔۔۔۔ عام طور پر ان کی کہانیوں میں انسانی ذہن کی فکری اور گوناگوں کیفیات کاتذکرہ ملتا ہے۔" اس مجموعے میں "آج کی رات ، افق، طلوع و غروب، بارہ مولہ کی موت، جگ ہنسائی، فرض، بہن اور مال، بلاوا، جنم سے جیت تک، بالترتیب نو افسانے شامل ہیں۔

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लेखक: परिचय

कशमीरी लाल ज़ाकिर 7 अप्रैल 1919 को बेगाबनियान गुजरात पाकिस्तान में पैदा हुए। उन्होंने आरम्भिक शिक्षा रियासत पुँछ और श्रीनगर के स्कूलों में प्राप्त की और फिर पंजाब यूनीवर्सिटी से बी.ए. और एम.ए. किया। ज़ाकिर प्रगतिवादी विचारधारा के प्रेरक अदीबों और शायरों में हैं। उन्होंने अपनी शायरी, कहानियों और नावेलों के द्वारा देश के दर्दनाक राजनैतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समस्याओं के विरुद्ध एक स्थायी जिहाद किया। ज़ाकिर ने अपनी साहिय्यिक यात्रा का आरम्भ तो शायरी से किया था लेकिन धीरे-धीरे वह कथा की तरफ़ आ गए। फिर मंटो, कृश्न चन्दर, अश्क, भीष्म साहनी और बेदी के सामीप्य ने उनकी कहानी कहने और देश की समस्याओं पर एक ज़िम्मेदार रचनाकार के दृष्टिकोण से सोचने में उनकी मदद की। विभाजन के बाद पूरे देश में भड़क उठने वाले फ़सादात और कश्मीर की दर्दनाक स्थिति ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन स्थितियों से पैदा होने वाली पीड़ा उनकी कहानियों का अहम हिस्सा है। उनकी किताबें ‘जब कश्मीर जल रहा था’, ‘अंगूठे का निशान’, ‘उदास शाम के आख़िरी लम्हे’, ‘ख़ून फिर ख़ून है’, ‘एक लड़की भटकी हुई’ वग़ैरह उसी रचनात्मक पीड़ा की आभिव्यक्ति हैं।
कशमीरी लाल ज़ाकिर की विभिन्न विधाओं पर आधारित सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुईं। ज़ाकिर को कई महत्वपूर्ण पुरुस्कारों से भी नवाज़ा गया। 2016 में देहांत हुआ।
लब्ध प्रतिष्ठित कथाकार, पद्मश्री सम्मान से सम्मानित

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