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लेखक : मौलवी अब्दुल हक़

V4EBook_EditionNumber : 0015

प्रकाशक : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द), देहली

प्रकाशन वर्ष : 1991

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : भाषा एवं साहित्य

उप श्रेणियां : भाषा

पृष्ठ : 267

ISBN संख्यांक / ISSN संख्यांक : 81-7160-024-7

सहयोगी : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द), देहली

क़वाइद-ए-उर्दू
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पुस्तक: परिचय

"قواعد اردو" مولوی عبدالحق کی مرتب کردہ اہم کتا ب ہے۔ جو اردو زبان کے قواعد کو سمجھنے میں بے حد معاون ہے۔ مولوی عبدالحق صاحب نے یہ کتاب 1914ء میں دار الاشاعت انجمن ترقی اردو لکھنو سے شائع کی تھی اور یہ قواعد کی کتاب مولوی عبدالحق صاحب نے اس زمانے میں لکھی تھی جب وہ اورنگ آباد (دکن) کے صدر مہتمم تعلیمات تھے یہ کتاب انگریزی قواعد نویسی کے اصولوں پر مرتب کی گئی تھی۔ جس میں عبدالحق صاحب نے نہایت آسان زبان میں آسان طریقوں سے اردو زبان کے قواعد کو سمجھایا ہے۔ابتدا میں زبان ، الفاظ اور حرف کی تعریف، حروف کے اقسام بیان کیے ہیں۔ اس کے بعد مختلف فصلوں میں علم ہجا، حروف تہجی، اسم ، جنس، صفت، ضمیر،فعل کی تعریف اور اقسام مع مثالیں پیش کی گئی ہیں۔ اس کے علاوہ صرف ونحو کی ترکیبات اور جملوں کے اقسام کو بھی سمجھایا گیا ہے۔ اردو کے اساتذہ اور طلبہ کے لیے یہ کتاب اردو قواعد سے واقفیت حاصل کرنے میں بہترین رہنما ثابت ہوگی۔جس کا مطالعہ سے اردو زبان کے قواعد اور تحریری و تقریری دونوں سطحوں پر اردو زبان کے صحیح استعمال سے واقف ہوجائیں گے۔

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लेखक: परिचय

बाबाए उर्दू मौलवी अब्दुलहक़ ने उर्दू की तरक़्क़ी के लिए अपनी ज़िंदगी को समर्पित कर दिया था। उनकी जीवन का कोई लम्हा ऐसा न था जो उर्दू की चिंता से ख़ाली हो। ये उनकी सेवाओं की मान्यता ही है कि वो हर जगह बाबा-ए-उर्दू के नाम से जाने जाते हैं। 

अब्दुलहक़ 1870ई. में हापुड़ ज़िला मेरठ में पैदा हुए। आरंभिक शिक्षा के बाद आगे की शिक्षा के लिए मोहमडन कॉलेज अलीगढ़ भेजे गए। यहाँ उनकी क्षमताओं को फलने फूलने का मौक़ा मिला। सर सय्यद तक पहुँच थी। उनसे सीधे लाभ उठाने का मौक़ा मिला। यहीं मौलाना हाली और मुहसिन-उल-मुल्क से भी नियाज़ हासिल हुए। सर सय्यद के साहबज़ादे जस्टिस महमूद से भी मुलाक़ात थी। सर सय्यद ने लेखन व संकलन का कुछ काम अब्दुलहक़ के सपुर्द भी किया इस तरह लिखने पढ़ने की पहली दीक्षा उसी मर्द बुज़ुर्ग के हाथों हुई।

शिक्षा से निवृत हो कर अब्दुलहक़ आजीविका की तलाश में हैदराबाद चले गए और एक स्कूल में अध्यापक की नौकरी स्वीकार कर ली। आख़िर तरक़्क़ी पाकर मदरसों के इंस्पेक्टर नियुक्त हुए। उसी ज़माने में अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू के सेक्रेटरी चुने गए। सन्1917 में उस्मानिया यूनीवर्सिटी के अनुवाद विभाग से अल्प अवधि के लिए सम्बद्ध रहे। आख़िर औरंगाबाद कॉलेज के प्रिंसिपल हो गए। अब उन्हें अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू को स्थिर करने का मौक़ा मिला। इसी के साथ ही लेखन व संकलन का सिलसिला जारी रहा। आख़िर में उस्मानिया यूनीवर्सिटी के उर्दू विभाग के अध्यक्ष हो गए। रिटायर होने के बाद दिल्ली आगए और उर्दू तथा अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू की सेवा में व्यस्त हो गए। देश विभाजित हुआ तो कराची चले गए और वहाँ भी उर्दू की तरक्क़ी की कोशिश में लगे रहे। आख़िर वहीं 1961ई. में उनका निधन हुआ। बाबाए उर्दू की सेवाओं को स्वीकारते हुए इलाहाबाद यूनीवर्सिटी ने सन् 1937 में उन्हें डाक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की।

बाबाए उर्दू मौलवी अब्दुलहक़ का ये कारनामा प्रशंसनीय है कि प्राचीन उर्दू साहित्य का जो धरोहर पांडुलिपियों के रूप में सन्दूक और अलमारियों में बंद था और जिसके नष्ट होजाने का डर था मौलवी साहब ने उसे क्रमबद्ध कर प्रकाशित किया और बर्बाद होने से बचा लिया। उन किताबों पर मौलवी साहब ने प्रस्तावना लिखकर उनके महत्व पर प्रकाश डाला। लेखकों के  जीवन परिचय खोज कर हम तक पहुंचाए, उन रचनाओं के रचनाकाल की विशेषताएं स्पष्ट कीं और उर्दू आलोचना के लिए एक मज़बूत आधार प्रदान किया।

छानबीन के बाद कई गलत धारणाओं का खंडन किया जैसे इस विचार को रद्द किया कि मीर अमन की बाग़-ओ-बहार फ़ारसी के क़िस्सा चहार दरवेश का अनुवाद है। उन्होंने तर्कों से साबित कर दिया कि इसका स्रोत नौ तर्ज़-ए-मुरस्सा है। मौलवी साहब की भाषा सरल और सहज होती है जैसी शोध के लिए आवश्यक है।
मुक़द्दमात-ए-अब्दुलहक़, ख़ुत्बात-ए-अब्दुलहक़, तंकीदात-ए-अब्दुलहक़ उनसे यादगार हैं। फ़र्हंग, लुग़त और इस्तिलाहात पर भी उन्होंने काम किया। “चंद हमअस्र” उनकी लोकप्रिय पुस्तक है जिसमें विभिन्न शख़्सियतों पर लेख शामिल हैं।

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