दो शब्द
उच्चरण सम्बन्धी कुछ संकेत
क्रम
न हीरे, जवाहर न ज़र बख़्श मौला
शहर में मिलते हैं मुश्किल से कहीं
दिल के कहने पर चल निकला
ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मुअत्तर कर दे
न जि़क्र गुल का कहीं ह। न माहताब का है
मिरी तौबा जो टूटी है, शरारत सब फ़ज़ा की है
हर दिल के मुकद्दर में मुहब्बत नहीं होती
आबले होंगे वो, झट फूट के बहने वाले
निगाहे-नाज़ का खाली गया न तीर कोई
गुलशन-गुलशन जि़क्र है उनका,
वो तो ख़ुबू है, हर इक सिम्त बिख्रना है उसे
लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला
तबीअत रय्तः ख़ूगरे-ग़म होती जाती है
जान जाए हक़ की खातिर आए जब बारी मिरी
ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ
अपने मरकज़ से कट गया हूँ मैं
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभने वाले
हँसते-हँसे न सही रो के ही कट जाने दो
क़दम-क़दम पे तू ए राह-रसै क़याम न कर
हर घड़ी इम्तिहान लेते हैं
हैं जितनी ख़ूबसूरत उतनी ही हैं बेवफ़ा देखो
दिखएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता-आहिस्ता
तुझको हमने सनम खुदा समझा
अब कि जब ख़ाहिशे सिला ही नहीं
करो दाग़े दिल की सदा पास्बानी
है मकी हर शै में वो, कहते हो जिसका ला-मकाँ
कुछ तो बोल ए सदा हुआ क्या है
बरसीं न मौसम में आँखें
यूँ तो इक उम्र साथ्-साथ हुई
सब दवाएँ हुईं अब ये दुआ हो जाए
छुपता नहीं नक़ाब में जल्वा शबाब का
आपकी ओर इक नज़र देखा
कैसी हक़क़त और ये कैसा मजाज़ है
दो हाथ जोड़ ये गुज़ारिश जनाब है
चार दिन और हैं यारों के ये डेरे यारी
यादों के फिर उमड़े बादल
मत कह बुरा किसी को
सामने जब है आइना होता
हर शै है कायनात की अपनी जगह अहम
नज़र का अपनी नज़रिया बदल के देख ज़रा
आदमी पहले तो लाजि़म है कि इन्सान बने
सहर को हस्बे-ज़रूरत वो रात कहते हैं
किया क्या ए सदा तूने बता आकर ज़माने में
रस्मे-दुनिया तो किसी तौश्र निभते जाओ
मंज़रे-रुखसते-दिलदार भुलाया न गया
हाथों में गर है जाम तो बलब पे दुआ भी है
निगाह ख़ुद पे टिकी थी तो और क्या दिखता
क़ानून सब किताबों में सड़-सड़ के गल गए
जी में है तोड़ दें सुबू
जिस्म जब तक फ़ना नहीं होता
ग़म से दिलो-गिर मिरे, ख़ूगर हैं हो गए
जग से छुप कर रो लेना
साकि़या लुत्फ़ मय का जब आए
दर्दे जिगर किसी को बताया न जाएगा
दिल गया जान गई जिस्म की बारी है
पीने दो जाहिदो पीने घड़ी है
तग़ाफ़ुल तिरा गो गवारा न था
हासिले अर्जे मुर्ददआ क्या था
नींद आई नहीं हमको न पूछो कब से
दुनिया में रह के दुनिया में
मैं तो आ गया हूँ साक़ी
दिल हसरतों से जब मिरा
सूदो-जि़याँ का इश्क़ में रखते हिसाब हैं
वाइज़ तू छोड अब तो
क्यूँ हसरत थी दिल लगाने की
कुछ तो तस्कीने इज्तराब मिले
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हें
दिल न माना मना के देख लिया
सबसे प्यारा है प्यार का रिश्ता
बला से अपनी अब आती रहे बहार कभी
गरजत बरसत आए बदरा
सागर जितना गहरा है
यूँ तो उनको है सौ दफ़ा देखा
दौलत जहाँ की मुझको तू मेरे खुदा न दे
तुझसे मिरे ख़ुदा मैं, गुज़ारिश् करूँ तो क्या
और क्या चाहिए जीने के लिए
क्यूँ कहीं बैठ के दम लेते नहीं एक घड़ी
तलाशे-जन्न्त (नज्रे काश्मीर)
मेरा क़लम
नौह-ए-शबनम
दशहरा
जा रे जा बदरा
गीत
गीत
छम छमा छम छमम
पी बिन सावन क्यूँ आया
करो लाख मुँह से नहीं नहीं
अज़ल के मुसव्विर से
राही तू चलता जा रे
गुलनामा
जुर्मे-सुख़न
आज फिर जीने का ऐ दोस्त इरादा कर तू
तआर्रुफ़
हवाई मेज़बान
दावते-नागवार
छलावा
AUTHORصدا انبالوی
CONTRIBUTORصدا انبالوی
PUBLISHER نامعلوم تنظیم
AUTHORصدا انبالوی
CONTRIBUTORصدا انبالوی
PUBLISHER نامعلوم تنظیم
दो शब्द
उच्चरण सम्बन्धी कुछ संकेत
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न हीरे, जवाहर न ज़र बख़्श मौला
शहर में मिलते हैं मुश्किल से कहीं
दिल के कहने पर चल निकला
ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मुअत्तर कर दे
न जि़क्र गुल का कहीं ह। न माहताब का है
मिरी तौबा जो टूटी है, शरारत सब फ़ज़ा की है
हर दिल के मुकद्दर में मुहब्बत नहीं होती
आबले होंगे वो, झट फूट के बहने वाले
निगाहे-नाज़ का खाली गया न तीर कोई
गुलशन-गुलशन जि़क्र है उनका,
वो तो ख़ुबू है, हर इक सिम्त बिख्रना है उसे
लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला
तबीअत रय्तः ख़ूगरे-ग़म होती जाती है
जान जाए हक़ की खातिर आए जब बारी मिरी
ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ
अपने मरकज़ से कट गया हूँ मैं
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभने वाले
हँसते-हँसे न सही रो के ही कट जाने दो
क़दम-क़दम पे तू ए राह-रसै क़याम न कर
हर घड़ी इम्तिहान लेते हैं
हैं जितनी ख़ूबसूरत उतनी ही हैं बेवफ़ा देखो
दिखएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता-आहिस्ता
तुझको हमने सनम खुदा समझा
अब कि जब ख़ाहिशे सिला ही नहीं
करो दाग़े दिल की सदा पास्बानी
है मकी हर शै में वो, कहते हो जिसका ला-मकाँ
कुछ तो बोल ए सदा हुआ क्या है
बरसीं न मौसम में आँखें
यूँ तो इक उम्र साथ्-साथ हुई
सब दवाएँ हुईं अब ये दुआ हो जाए
छुपता नहीं नक़ाब में जल्वा शबाब का
आपकी ओर इक नज़र देखा
कैसी हक़क़त और ये कैसा मजाज़ है
दो हाथ जोड़ ये गुज़ारिश जनाब है
चार दिन और हैं यारों के ये डेरे यारी
यादों के फिर उमड़े बादल
मत कह बुरा किसी को
सामने जब है आइना होता
हर शै है कायनात की अपनी जगह अहम
नज़र का अपनी नज़रिया बदल के देख ज़रा
आदमी पहले तो लाजि़म है कि इन्सान बने
सहर को हस्बे-ज़रूरत वो रात कहते हैं
किया क्या ए सदा तूने बता आकर ज़माने में
रस्मे-दुनिया तो किसी तौश्र निभते जाओ
मंज़रे-रुखसते-दिलदार भुलाया न गया
हाथों में गर है जाम तो बलब पे दुआ भी है
निगाह ख़ुद पे टिकी थी तो और क्या दिखता
क़ानून सब किताबों में सड़-सड़ के गल गए
जी में है तोड़ दें सुबू
जिस्म जब तक फ़ना नहीं होता
ग़म से दिलो-गिर मिरे, ख़ूगर हैं हो गए
जग से छुप कर रो लेना
साकि़या लुत्फ़ मय का जब आए
दर्दे जिगर किसी को बताया न जाएगा
दिल गया जान गई जिस्म की बारी है
पीने दो जाहिदो पीने घड़ी है
तग़ाफ़ुल तिरा गो गवारा न था
हासिले अर्जे मुर्ददआ क्या था
नींद आई नहीं हमको न पूछो कब से
दुनिया में रह के दुनिया में
मैं तो आ गया हूँ साक़ी
दिल हसरतों से जब मिरा
सूदो-जि़याँ का इश्क़ में रखते हिसाब हैं
वाइज़ तू छोड अब तो
क्यूँ हसरत थी दिल लगाने की
कुछ तो तस्कीने इज्तराब मिले
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हें
दिल न माना मना के देख लिया
सबसे प्यारा है प्यार का रिश्ता
बला से अपनी अब आती रहे बहार कभी
गरजत बरसत आए बदरा
सागर जितना गहरा है
यूँ तो उनको है सौ दफ़ा देखा
दौलत जहाँ की मुझको तू मेरे खुदा न दे
तुझसे मिरे ख़ुदा मैं, गुज़ारिश् करूँ तो क्या
और क्या चाहिए जीने के लिए
क्यूँ कहीं बैठ के दम लेते नहीं एक घड़ी
तलाशे-जन्न्त (नज्रे काश्मीर)
मेरा क़लम
नौह-ए-शबनम
दशहरा
जा रे जा बदरा
गीत
गीत
छम छमा छम छमम
पी बिन सावन क्यूँ आया
करो लाख मुँह से नहीं नहीं
अज़ल के मुसव्विर से
राही तू चलता जा रे
गुलनामा
जुर्मे-सुख़न
आज फिर जीने का ऐ दोस्त इरादा कर तू
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