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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आग पी सकता था और पानी पे चल सकता था मैं

तरकश प्रदीप

आग पी सकता था और पानी पे चल सकता था मैं

तरकश प्रदीप

MORE BYतरकश प्रदीप

    आग पी सकता था और पानी पे चल सकता था मैं

    उन दिनों तो हर किसी मौसम में ढल सकता था मैं

    एक-तरफ़ा कुछ नहीं था ये नदामत किस लिए

    तू जला सकता था मुझ को और जल सकता था मैं

    काम ले सकता था तू अपने हुनर से थोड़ा और

    तेरे साँचे में कुछ और अच्छे से ढल सकता था मैं

    मैं था कोई हादिसा 'आलम था जिसका मुंतज़िर

    टालने वाला कोई होता तो टल सकता था मैं

    हाँ तुम्हारी जल्द-बाज़ी का मुझे अफ़्सोस है

    हाँ तुम्हारी सोच से बेहतर निकल सकता था मैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : उदास लोगों का होना बहुत ज़रूरी है (पृष्ठ 98)
    • रचनाकार : तर्कश प्रदीप
    • प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2023)
    • संस्करण : 2nd

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