भरा हुआ था मैं ख़ुद से नहीं थी ख़ाली जगह
भरा हुआ था मैं ख़ुद से नहीं थी ख़ाली जगह
फिर उस ने आ के हटाया ज़रा बना ली जगह
तू उस के दिल में जगह चाहता है यार जो शख़्स
किसी को देता नहीं अपने साथ वाली जगह
कुछ ऐसी भीड़ थी मुझ में मिरी जगह न बची
तू देख फिर भी तिरे वास्ते बचा ली जगह
शजर को 'इश्क़ हुआ आसमानी बिजली से
फिर एक शब वो मिले देख उधर वो काली जगह
घुटन थी रूह को काफ़ी नहीं था एक बदन
सो एक और बदन जोड़ कर बढ़ा ली जगह
जुनूँ की ख़ाक उदासी की धूप हिज्र का नम
ये दिल है ग़म की नुमू के लिए मिसाली जगह
जगह नहीं थी नए ख़्वाब के लिए बिल्कुल
सो नम निकाल कर आँखों से कुछ निकाली जगह
मैं सोचता हूँ पता दूँ तिरी जगह का उन्हें
जो सोचते हैं कि जन्नत है इक ख़याली जगह
मिरा ज़मीं पे ये पहला सफ़र नहीं है 'उमैर'
कि हर जगह मुझे लगती है देखी-भाली जगह
- पुस्तक : आख़िरी तस्वीर (पृष्ठ 100)
- रचनाकार : उमैर नजमी
- प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2024)
- संस्करण : First
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