एज़ार-ए-यार पे ज़ुल्फ-ए-सियाह-फ़ाम नहीं
मगर ये हश्र का दिन है कि जिस की शाम नहीं
फ़िराक़-ए-यार में दोनो से हम को काम नहीं
हवस सहर की नहीं आरज़ू-ए-शाम नहीं
विला-ए-काबा-ए-अब्रू से मुँह को क्या फेरूँ
नमाज़ ख़त्म न हो जब तलक सलाम नहीं
ये सैफ़ आप की मिस्ल-ए-परी-सही-क़द है
मगर ये ऐब है चलती नहीं ख़िराम नहीं
कहो न सर्व को इक ज़र-ख़रीद ही अपना
किया जो बंदे को आज़ाद फिर ग़ुलाम नहीं
नहीं इआ'दा-ए-ताअ'त को पेशवा दरकार
क़ज़ा नमाज़ को कुछ हाजत-ए-इमाम नहीं
किसी तरह शब-ए-फ़ुर्क़त बसर नहीं होती
कुछ इस को गर्दिश-ए-अय्याम से भी काम नहीं
जो उस ने बात न की हो गया मुझे इसबात
दहन वो तंग है गुंजाइश-ए-कलाम नहीं
बुझी है आब से क्या तेरी तेग़-ए-तेज़ की आँच
कि ख़ूँ-फ़िशाँ मिरे दिल का कबाब-ए-ख़ाम नहीं
फिरी है फ़ुर्क़त-ए-जानाँ में चश्म-ए-दुख़्तर-ए-रज़
ये गर्दिश आँख की साक़ी है दौर-ए-जाम नहीं
न देखा नक़्श क़दम का सदा-ए-पा न सुनी
समंद-ए-उम्र सा कोई सुबुक ख़िराम नहीं
बरहना रहती है शमशीर-ए-अब्रू-ए-क़ातिल
मिसाल-ए-तेग़-ए-अजल हाजत-ए-नियाम नहीं
बंधें वो हाथ हिना से किया है जिन से शहीद
कुछ और यार से मंज़ूर इंतिक़ाम नहीं
न दाग़ दो शब-ए-फ़ुर्क़त का दिन को नाम न लो
अभी चराग़ न रौशन करो कि शाम नहीं
जिगर से सीने से दिल से गुज़र गई दम में
तिरी तरह तिरी तलवार को क़याम नहीं
सितारा-ए-फ़लक-ए-हुस्न कहिए कम-सिन है
अभी वो चाँद का टुकड़ा मह-ए-तमाम नहीं
फिरे तलब में जो दुनिया की वो नहीं दीं-दार
मिसाल-ए-दाना जो गर्दिश में है इमाम नहीं
न ख़त्त-ए-मुसहफ़-ए-आरिज़ का मो'तक़िद हो 'वज़ीर'
हुरूफ़ जिस में हों अल्लाह का कलाम नहीं
स्रोत:
Daftar-e-Fasahat (Pg. ebook-148 page-132)
-
लेखक:
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
-
- संस्करण: 1847
- प्रकाशक: मतबा मुस्तफ़ाई, लखनउ
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.