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हमेशा तमन्ना-ओ-हसरत का झगड़ा हमेशा वफ़ा-ओ-मोहब्बत का हुल्लड़

नूह नारवी

हमेशा तमन्ना-ओ-हसरत का झगड़ा हमेशा वफ़ा-ओ-मोहब्बत का हुल्लड़

नूह नारवी

MORE BYनूह नारवी

    हमेशा तमन्ना-ओ-हसरत का झगड़ा हमेशा वफ़ा-ओ-मोहब्बत का हुल्लड़

    थमे क्या तबी'अत रुके किस तरह दिल ये आफ़त वो फ़ित्ना ये आँधी वो झक्कड़

    जो राज़-ए-मोहब्बत को जानेगा कोई तो ये जान ले वो मचा देगा गड़बड़

    नज़र की तरह बढ़ नज़र की तरह रुक नज़र की तरह मिल नज़र की तरह लड़

    मिरे दिल के हाथों से बहर-ए-वफ़ा में मिरी ज़िंदगी में हो जाए गड़बड़

    कभी कसरत-ए-रंज-ओ-ग़म का थपेड़ा कभी जोश-ए-उम्मीद-ओ-हसरत की ओझढ़

    कहाँ मैं हूँ ऐसा कि तू मेहरबाँ हो कहाँ क़िस्मत ऐसी कि आसाँ हो मुश्किल

    अगर और गाहक नहीं कोई तेरा तो ख़ंजर-ए-नाज़ मेरे गले पड़

    बशर क्या फ़रिश्ते जो पीटें ढिंढोरा तो क्यूँ कर छुपे राज़ कम-बख़्त दिल का

    इधर आह निकली हमारी ज़बाँ से उधर मच गया सारी दुनिया में हुल्लड़

    सर-ए-हम-सरी हुस्न-ओ-नाज़-ओ-अदा में रखता था कोई रक्खेगा कोई

    तिरा अक्स-ए-आईना है और तू है जो लड़ना है तुझ को तो अपने ही से लड़

    बहार-ए-जवानी हयात-ए-जवानी ये ग़ैर-फ़ानी वो ग़ैर-फ़ानी

    उरूस-ए-चमन का उतरता है गहना ख़िज़ाँ के ज़माने में होती है पतझड़

    हज़ारों मरे हैं हज़ारों मरे हैं हज़ारों मरेंगे हज़ारों मिटेंगे

    वो इंसाँ नहीं उस को समझो फ़रिश्ता जो बर्दाश्त कर ले मोहब्बत की ओझढ़

    वो 'अर्ज़-ए-तमन्ना को फ़रियाद समझे वो फ़रियाद को ग़म की रूदाद समझे

    ज़रा सी मिरी बात थी लेकिन उस का हुआ रफ़्ता रफ़्ता कहाँ तक बतंगड़

    उधर ऐश-ओ-इशरत इधर यास-ओ-हसरत जहाँ वाले देखें जहाँ की दो-रंगी

    कहीं कोई पैहम बचाता है बग़लें कोई पीटता है कहीं सर धड़ा-धड़

    मोहब्बत ने छोड़ा ये तुर्फ़ा शगूफ़ा बहार-ए-जवानी भी दिल ने देखी

    अभी फूलने-फलने के दिन कहाँ थे मगर कट गई नख़्ल-ए-उम्मीद की जड़

    जो इक जंग-जू इदराक सुल्ह-जू हो तो झगड़ा उट्ठे बखेड़ा उठे

    दिल-ओ-दिल-रुबा में निभे क्या मोहब्बत उधर वो भी ज़िद्दी इधर ये भी अक्खड़

    किए सैकड़ों अहद-ओ-पैमान-ए-उल्फ़त मगर ख़ैर से कोई सच्चा निकला

    वो कहते हैं मिलने को अब हश्र के दिन कहीं हो जाए कुछ उस दिन भी गड़बड़

    मुक़द्दर में लिक्खा था हुन कर बिगड़ना कोई क्यूँ मरता कोई क्यूँ उठता

    ज़मीं-दोज़ अहल-ए-ज़मीं हो गए सब पड़ी आसमाँ से वो सर पर दो-हत्थड़

    जो नावक चले और तलवार निकली तो क़ाएम रहा मैं ही 'अहद-ए-वफ़ा पर

    किसी ने किसी को भी फिर कर देखा पड़ी इम्तिहाँ-घर में कुछ ऐसी भागड़

    समझते हैं आग़ाज़-ओ-अंजाम अपना मह-ओ-मेहर क्या आएँगे तेरे आगे

    इधर से उधर उन का फिर जाएगा मुँह लगाएगी शर्मिंदगी ऐसा थप्पड़

    ख़याल-ओ-तसव्वुर में हरगिज़ लाना हँसी दिल-लगी में हमेशा उड़ाना

    मिरे दा'वा-ए-इश्क़ की क़द्र क्या हो वो इस को समझते हैं मज्ज़ूब की बड़

    जहाँ देखता हूँ वहाँ देखता हूँ जिधर देखता हूँ उधर देखता हूँ

    मोहब्बत की शोरिश मोहब्बत की ऊधम मोहब्बत का ग़ौग़ा मोहब्बत का हुल्लड़

    मज़ा जब है आपस में कुछ जंग भी हो मज़ा जंग में जब है कुछ सुल्ह भी हो

    दिखा दे तलव्वुन का अपने तमाशा इधर लड़ उधर मिल इधर मिल उधर लड़

    बहाया मज़ामीन का तुम ने दरिया ग़ज़ल में बहुत ख़ूब अश'आर लिक्खे

    ज़माने को 'नूह' हैरत क्यूँ हो कि तूफ़ान ऐसा ज़मीन ऐसी गड़बड़

    स्रोत:

    Ejaz-e-Nooh (Pg. ebook-187 page-82)

    • लेखक: मोहम्मद नूह साहब नूह
      • प्रकाशक: असरार करीमी प्रेस, इलाहाबाद

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