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हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे

आग़ा हज्जू शरफ़

हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे

आग़ा हज्जू शरफ़

MORE BYआग़ा हज्जू शरफ़

    हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे

    कभी था शौक़-ए-गुल हम को कभी दिल हम भी रखते थे

    क़ज़ा भी तेरे हाथों चाहते थे तुझ को क्या कीजे

    नहीं तो तेग़-ए-दम के साथ क़ातिल हम भी रखते थे

    ख़ता-ए-इश्क़ पर हम पर इतना भी सितम ढाओ

    अगर चाहा तो चाहा क्या हुआ दिल हम भी रखते थे

    ख़ुदा को इल्म है ज़िंदा है या जल-भुन गया शब को

    दिल अपना तेरे परवानों में शामिल हम भी रखते थे

    मिरी जाँ-बाज़ियों पर गोर में रुस्तम ये कहता है

    थे ऐसे जरी गो शेर का दिल हम भी रखते थे

    इलाक़ा इश्क़ का लेते ये सोचे होंगे बर्बादी

    वगर्ना नक़्द-ए-जान सिक्का-ए-दिल हम भी रखते थे

    ख़ुदा के सामने होगी जो पुर्सिश इश्क़-बाज़ों की

    कहेंगे हम भी इतना इश्क़-ए-कामिल हम भी रखते थे

    तमन्ना थी हमें भी तेरी सोहबत देख लेने की

    कि परवाने थे शौक़-ओ-ज़ौक़-ए-महफ़िल हम भी रखते थे

    बड़े उक़्दा-कुशा थे तुम तो हल इस को भी करना था

    मुहिम्म-ए-इश्क़ सर करने की मुश्किल हम भी रखते थे

    तलाश-ए-यार में ख़ुफ़िया गए उश्शाक़ दुनिया से

    ख़बर भी की हम को शौक़-ए-मंज़िल हम भी रखते थे

    कोई लहज़ा जुदाई में तड़पने से फ़ुर्सत थी

    कभी पहलू में दिल मानिंद-ए-बिस्मिल हम भी रखते थे

    जुनूँ का ज़ोर था दिल में जगह कर ली थी वहशत ने

    ग़रज़ पेश-ए-नज़र लैला महमिल हम भी रखते थे

    जगह दिल की तरह पहलू में दी होती हमें तुम ने

    लियाक़त इस सर-अफ़राज़ी के क़ाबिल हम भी रखते थे

    उसे क्यूँकर कहते हम कि यकता है ख़ुदाई में

    शनासा थे तमीज़-ए-हक़्क़-ओ-बातिल हम भी रखते थे

    ख़ुदा ने जान छुड़वाई 'शरफ़' वो ख़ुद बिगड़ बैठा

    हक़ीक़त में अजब माशूक़-ए-जाहिल हम भी रखते थे

    स्रोत:

    Deewan-e-Sharf(Rekhta Website) (Pg. 269)

    • लेखक: आग़ा हज्जू शरफ़
      • प्रकाशक: मतबा जाफ़री, लख़नऊ
      • प्रकाशन वर्ष: 1875

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