कहीं दरिया नहीं होता कहीं सहरा नहीं होता
कहीं दरिया नहीं होता कहीं सहरा नहीं होता
ज़रूरत पर हमारी कोई भी अपना नहीं होता
कहानी ख़त्म हो जाती कोई सदमा नहीं होता
बिछड़ते वक़्त वो छुप कर अगर रोया नहीं होता
बताओ कौन सी शय की कमी है मेरे पैकर में
मुझे समझाओ मेरा अक्स क्यूँ समझा नहीं होता
तुम्हारी याद के साए में यूँ हर-वक़्त रहता हूँ
मैं तन्हा रह भी जाऊँ तो कभी तन्हा नहीं होता
मोहब्बत में यही नज़ारगी तो लुत्फ़ देती है
कोई खिड़की नहीं होती कोई पर्दा नहीं होता
तसल्ली और दिलासे सब के सब बे-कार जाते हैं
न जाने किस तरह बिखरा हूँ मैं यकजा नहीं होता
उसे तुम धूप में बरसात में कोहरे में रख देखो
'पवन' वो आइना है जो कभी धुँधला नहीं होता
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