मसरूर दिल-ए-ज़ार कभी हो नहीं सकता
मसरूर दिल-ए-ज़ार कभी हो नहीं सकता
या'नी तिरा दीदार कभी हो नहीं सकता
मैं ग़ैर-ए-वफ़ादार कभी हो नहीं सकता
इस से तुम्हें इंकार कभी हो नहीं सकता
अब लुत्फ़-ओ-करम पर भी भरोसा नहीं उस को
अच्छा तिरा बीमार कभी हो नहीं सकता
उसे शैख़ अगर ख़ुल्द की तारीफ़ यही है
मैं इस का तलबगार कभी हो नहीं सकता
आ'माल की पुर्सिश न करे दावर-ए-महशर
मजबूर तो मुख़्तार कभी हो नहीं सकता
मुमकिन है फ़रिश्तों से कोई सहव हुआ हो
मैं इतना गुनाहगार कभी हो नहीं सकता
आज़ार-ए-मोहब्बत है और आज़ार है ऐ 'जोश'
जो बाइस-ए-आज़ार कभी हो नहीं सकता
स्रोत:
Rooh-e-Ghazal,Pachas Sala Intekhab (Pg. 72)
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- संस्करण: 1993
- प्रकाशक: अंजुमन-ए-रूह-ए-अदब, इलाहाबाद
- प्रकाशन वर्ष: 1993
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