तकल्लुफ़ नहीं हम से ज़ेबा तुम्हारा
तुम्हारे हमारे हमारा तुम्हारा
लिया दिल तो लो जान भी क्यों रहे जी
तमन्ना हमारी तक़ाज़ा तुम्हारा
ये तस्वीर-चेहरा उतर क्यों गया है
खिंचे किस से हो क्या है नक़्शा तुम्हारा
न तीर आह का दस्त-ए-क़ुदरत में अपने
न शमशीर-ए-अबरू पे क़ब्ज़ा तुम्हारा
चले हम तो हसरत ही ले कर रक़ीबो
मुबारक रहे तुम को प्यारा तुम्हारा
रक़ीबों से लड़ने का क़िस्सा न पोंछो
फ़ज़ीहत हमारी तमाशा तुम्हारा
न तहरीर-ए-ख़त है न बैत अब्रवीं हैं
ये मज़मूँ हमारा वो फ़िक़रा तुम्हारा
मैं अपने ही जज़्बे का क़ाइल था लेकिन
ग़ज़ब है मिरी जान ग़ुस्सा तुम्हारा
मुझे और से क्या मैं आशिक़ हूँ प्यारे
तुम्हारा तुम्हारा तुम्हारा तुम्हारा
सुलैमाँ हूँ पर यूँ अगर ख़ाक हो कर
अमल में हो नक़्श-ए-कफ़-ए-पा तुम्हारा
ख़फ़ा होते क्यों हो कि रखता है प्यारे
न जज़्बा हमारा न जल्वा तुम्हारा
'नसीम' इस चमन में गुल-ए-तर की सूरत
फटे कपड़े रखते हैं पर्दा तुम्हारा
स्रोत:
Deewan-e-Naseem (Pg. 5)
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लेखक:
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
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- प्रकाशक: मतबा गुलशन-ए-फ़ैज़, लखनऊ
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