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नाख़ुदा वो अपनी कश्ती का अगर हो जाएगा

महवी सिद्दीक़ी

नाख़ुदा वो अपनी कश्ती का अगर हो जाएगा

महवी सिद्दीक़ी

MORE BYमहवी सिद्दीक़ी

    नाख़ुदा वो अपनी कश्ती का अगर हो जाएगा

    तय ब-आसानी मोहब्बत का सफ़र हो जाएगा

    दिल से जो भी पैरव-ए-ख़ैरुल-बशर हो जाएगा

    वो ज़मीन-ओ-आसमाँ का ताज-ए-सर हो जाएगा

    जल्वा-ए-अहमद का नज़्ज़ारा अगर हो जाएगा

    देखने वाला 'अज़ीज़-ए-हर-नज़र हो जाएगा

    फ़िक्र-ए-मंज़िल दूरी-ए-साहिल भी कोई चीज़ है

    पार है बेड़ा इशारा भी अगर हो जाएगा

    दिल में उन की याद लब पर ज़िक्र उन का सुब्ह-ओ-शाम

    ख़ुद-बख़ुद पैदा दु'आओं में असर हो जाएगा

    ख़ाक-ए-तैबा को बना लेगा जो सुर्मा आँख का

    वो यक़ीनन इस चमन का दीदा-वर हो जाएगा

    बाग़ बन जाएँगे सहरा ख़ाक बन जाएँगे फूल

    इक इशारा चश्म-ए-अहमद का जिधर हो जाएगा

    ज़र्रा-ज़र्रा दिल का बन जाएगा रश्क-ए-आफ़्ताब

    परतव-ए-हुस्न-ए-नबी जब जल्वा-गर हो जाएगा

    आसमाँ वाले झुकेंगे उस की 'इज़्ज़त के लिए

    बंदा-ए-दरगाह-ए-अहमद जो बशर हो जाएगा

    फ़िक्र-ए-मरहम क्यों करें हम चारा-ए-ग़म क्यों करें

    हाल-ए-दिल का आइना ज़ख़्म-ए-जिगर हो जाएगा

    हम मदीने में हों 'महवी' उन का रौज़ा सामने

    ख़ुद-बख़ुद फिर क़िस्सा-ए-ग़म मुख़्तसर हो जाएगा

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