aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

जोश-ए-गुल

नज़्म तबातबाई

जोश-ए-गुल

नज़्म तबातबाई

MORE BYनज़्म तबातबाई

    वो मौसम है कि ख़ूबान-ए-चमन बनते-सँवरते हैं

    ये आलम है कि जैसे रंग तस्वीरों में भरते हैं

    है ख़्वाबीदा जो सब्ज़ा आइना-ख़ाने में शबनम के

    नफ़स-दुज़दीदा बाद-ए-सुब्ह के झोंके गुज़रते हैं

    पर-ए-तूती पे होता है दुम-ए-ताऊस का धोका

    हवा से उड़ के बर्ग-ए-गुल जो सब्ज़े पर बिखरते हैं

    मिला है सब्ज़ा-ए-नौ-ख़ेज़ को क्या रंग-ए-ज़ंगारी

    हवा लगने से जिस की ज़ख़्म-ए-दिल लाला के भरते हैं

    शगूफ़ा-रेज़ हो कर डालियाँ मदहोश करती हैं

    कि मय-कश जानते हैं ताक़ से शीशे उतरते हैं

    नज़ाकत से अदा से झूम कर कहती है शाख़-ए-गुल

    यूँही इक जाम पी कर रंग मस्तों के निखरते हैं

    बशाशत कह रही है चेहरा-ए-गुल की इधर देखो

    यूँही महफ़िल में हँस देते हैं पैमाने जो भरते हैं

    चमन की बढ़ के शाख़ें अब्र से करती हैं गुल-बाज़ी

    गुलों की आइना-दारी पर-ए-ताऊस करते हैं

    गुमाँ होता है की लश्कर-कुशी बाद-ए-बहारी ने

    ज़िरह-पोश आब हो जाता है जब बादल गुज़रते हैं

    दम-ए-सुब्ह-ए-बहारी है रुख़-ए-ख़ुर पर नक़ाब-अफ़्गन

    किसी आईने पर तार-ए-नफ़स जैसे बिखरते हैं

    वहीं जा कर थमेगा कारवान-ए-लाला-ओ-गुल भी

    नसीम-ए-सुब्ह के झोंके जहाँ जा कर ठहरते हैं

    निहालान-ए-चमन कर लेंगे क़ब्ज़ा सारे आलम पर

    वहाँ से फिर नहीं हटते जहाँ पे पाँव धरते हैं

    ज़मीं पर जाल फैलाया है कोसों ज़ुल्फ़-ए-सुम्बुल ने

    अनादिल इन दिनों आते हुए गुलशन में डरते हैं

    जवाब-ए-जश्न-ए-जम है गर्मी-ए-हंगामा-ए-गुलशन

    कि ले कर कश्ती-ए-मय तख़्त परियों के उतरते हैं

    अनादिल मिल चुके हैं ख़ाक में जो क्या ख़बर उन को

    कि शाख़ें झूमती हैं फूल तुर्बत पर बिखरते हैं

    स्रोत:

    Jadeed Shora.e Urdu (Pg. 118)

    • लेखक: Dr. Abdul Vaheed
      • प्रकाशक: Firoz sons Printers Publishers Book sales

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए