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गंगा

MORE BYसुरूर जहानाबादी

    आब-रूद-ए-गंगा उफ़ री तिरी सफ़ाई

    ये तेरा हुस्न दिल-कश ये तर्ज़-ओ-दिल-रुबाई

    तेरी तजल्लियाँ हैं जल्वा-फ़रोश मा'नी

    तनवीर में है तेरी इक शान-ए-किब्रियाई

    जमुना तिरी सहेली गो साथ की है खेली

    उस में मगर कहाँ है तेरी सी जाँ-फ़ज़ाई

    बे-लौस तेरा दामन है दाग़-ए-मासियत से

    मौज़ूँ है तेरे क़द पर मल्बूस-ए-पारसाई

    दिल-बंद हम हैं तेरे लख़्त-ए-जिगर हैं तेरे

    नख़्ल-ए-मुराद है तौ और हम समर हैं तेरे

    मीनू-सवाद तुझ से हैं वादियाँ हमारी

    और किश्त-ए-आरज़ू है रश्क-ए-जिनाँ हमारी

    वो दिन भी होगा होंगे जब हम ग़रीक़-ए-रहमत

    और तेरी नज़्र होंगी ये हड्डियाँ हमारी

    गंगा में फेंक आना बा'द-ए-फ़ना उठा कर

    बर्बाद हो मिट्टी आसमाँ हमारी

    यारब दफ़्न कर के अहबाब भूल जाएँ

    ले कर हमारे ख़ुश ख़ुश गंगा को फूल जाएँ

    पाक नाज़नीन फूलों के गहने वाली

    सरसब्ज़ वादियों के दामन में बहने वाली

    नाज़-आफ़रीं सिद्क़-ओ-सफ़ा की देवी

    इफ़्फ़त-ए-मुजस्सम पर्बत की रहने वाली

    सल्ले-अला ये तेरी मौजों का गुनगुनाना

    वहदत का ये तराना चुप रहने वाली

    हुस्न-ए-ग़यूर तेरा है बे-नियाज़ हस्ती

    तो बहर-ए-मा'रफ़त है पाक-बाज़ हस्ती

    हाँ तुझ को जुस्तुजू है किस बहर-ए-बे-कराँ की

    हम पर तो कुछ हक़ीक़त खुलती नहीं जहाँ की

    पर्दा-सोज़ इम्काँ जल्वा-रेज़ इरफ़ाँ

    तो शम-ए-अंजुमन है किस बज़्म-ए-दिल-सिताँ की

    क्यूँ जादा-ए-तलब में फिरती कशाँ कशाँ है

    तुझ को तलाश है किस गुम-गश्ता कारवाँ की

    जाती है तू कहाँ को आती है तू कहाँ से

    दिल-बस्तगी है तुझ को किस बहर-ए-बे-निशाँ से

    आई नज़र तजल्ली जब शाहिद अज़ल की

    ज़र्रों में जा के चमकी फूलों में जा के झलकी

    हिन्दोस्तान है इक दरिया-ए-हुस्न-ए-क़ुदरत

    और उस में पंखुड़ी है तू ख़ुशनुमा कँवल की

    निकली हिमालिया से महव-ए-ख़रोश हो कर

    तू आह तिश्ना-लब थी वो जल्वा-ए-अज़ल की

    करती हुई ज़मीं पर मोती निसार आई

    दर्शन को आह हर के तू हरिद्वार आई

    ये जोश-ए-सब्ज़ा-ए-गुल ये तेरी आब-बारी

    क़ुदरत के चप्पे चप्पे पर ये शगूफ़ा-कारी

    हिन्दोस्ताँ को तू ने जन्नत-निशाँ बनाया

    नहरें कहाँ कहाँ हैं तेरे करम की जारी

    आब-रूद-ए-गंगा मौजों में तेरे मिल कर

    मौज-ए-सराब-ए-हस्ती हो बे-निशाँ हमारी

    बा'द-ए-फ़ना हमारे फूलों में बू हो तेरी

    गुम हों रह-ए-तलब में तो जुस्तुजू हो तेरी

    आए अजल की ज़ौ पर जब अपनी उम्र-ए-फ़ानी

    और ख़त्म रफ़्ता रफ़्ता हो सैल-ए-ज़िंदगानी

    दुनिया से आह जब हो अपनी सफ़र का सामाँ

    बालीं पे अक़रबाँ हों सरगर्म-ए-नौहा-ख़्वानी

    जब होंट ख़ुश्क हों और दुश्वार हो तनफ़्फ़ुस

    अहबाब अपने मुँह में टपकाएँ तेरा पानी

    हँसते हुए जहाँ से हम शाद-काम जाएँ

    दुनिया से पी के तेरी उल्फ़त का जाम जाएँ

    स्रोत:

    Tasvir-e-Manazil (Jild Avval) (Pg. 42 e-79)

      • प्रकाशक: उर्दू मरकज़, लाहाैर

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