आज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी
लुत्फ़ में तेरे कहीं कोई कमी है साक़ी
सुरूर, आल-ए-अहमद (1911-2002) उर्दू आलोचना को बौद्धिक तेज़ी, वैचारिक फैलाव और दृष्टि की व्यापकता देने वाले प्रमुख आलोचक और बुद्धिजीवी। बदायूँ (उत्तर प्रदेश) में जन्म। उर्दू और अंग्रेज़ी पर समान अधिकार। मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ़ में उर्दू के प्रोफ़ेसर रहे।
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