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अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद

1948 | बेतिया, भारत

अस्सी के दशक में उभरने वाले बिहार के शायरों में शामिल

अस्सी के दशक में उभरने वाले बिहार के शायरों में शामिल

अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद के शेर

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अब चराग़ों में ज़िंदगी कम है

दिल जलाओ कि रौशनी कम है

नहीं मिलती उन्हें मंज़िल जिन्हें ख़ौफ़-ए-हवादिस है

जो मौजों से नहीं डरते नदी को पार करते हैं

बेवफ़ा कहिए बा-वफ़ा कहिए

दिल में आए जो बरमला कहिए

सब अपनी अपनी राह पर आगे निकल गए

अब किस का इंतिज़ार किए जा रहे हैं हम

ज़िंदगी छोटी है सामान बहुत

और दिल के भी हैं अरमान बहुत

जिस के पैरों तले ज़मीन नहीं

उस का सारा जहान होता है

जाने किस की याद ने ली दिल में गुदगुदी

आइना देख देख के शरमा रहे हैं हम

कहाँ शिकवा ज़माने का पस-ए-दीवार करते हैं

हमें करना है जो भी हम सर-ए-बाज़ार करते हैं

अपने दामन की कुछ ख़बर है 'मजीद'

सोच कर ख़ुद को पारसा कहिए

कैफ़-ओ-मस्ती सुरूर क्या मा'नी

ज़िंदगी में भी अब ख़ुशी कम है

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