अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद के शेर
अब चराग़ों में ज़िंदगी कम है
दिल जलाओ कि रौशनी कम है
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टैग : चराग़
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नहीं मिलती उन्हें मंज़िल जिन्हें ख़ौफ़-ए-हवादिस है
जो मौजों से नहीं डरते नदी को पार करते हैं
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बेवफ़ा कहिए बा-वफ़ा कहिए
दिल में आए जो बरमला कहिए
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सब अपनी अपनी राह पर आगे निकल गए
अब किस का इंतिज़ार किए जा रहे हैं हम
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ज़िंदगी छोटी है सामान बहुत
और दिल के भी हैं अरमान बहुत
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जिस के पैरों तले ज़मीन नहीं
उस का सारा जहान होता है
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न जाने किस की याद ने ली दिल में गुदगुदी
आइना देख देख के शरमा रहे हैं हम
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कहाँ शिकवा ज़माने का पस-ए-दीवार करते हैं
हमें करना है जो भी हम सर-ए-बाज़ार करते हैं
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अपने दामन की कुछ ख़बर है 'मजीद'
सोच कर ख़ुद को पारसा कहिए
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कैफ़-ओ-मस्ती सुरूर क्या मा'नी
ज़िंदगी में भी अब ख़ुशी कम है
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