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Abu Mohammad Wasil Bahraichi's Photo'

अबु मोहम्मद वासिल बहराईची

1922 - 2018 | बहराइच, भारत

अबु मोहम्मद वासिल बहराईची के शेर

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हँसा करते हैं अक्सर लोग दीवानों की बातों पर

जहाँ वाले नहीं समझे मोहब्बत की ज़बाँ शायद

रह-ए-वफ़ा में उन्हीं की ख़ुशी की बात करो

वो ज़िंदगी हैं तो फिर ज़िंदगी की बात करो

तिरे ख़याल में मैं हूँ मिरे ख़याल में तू

मिरे बग़ैर तिरी दास्ताँ रहे रहे

मिज़ाज-ए-हुस्न तो इक हाल पर रहा क़ाएम

लुटाने वालों ने सब कुछ लुटा के देख लिया

मुझे वो बातों बातों में अगर दीवाना कह देते

तो दीवानों में मेरी मो'तबर दीवानगी होती

अगर तेरी तरह तब्लीग़ करता पीर-ए-मय-ख़ाना

तो दुनिया-भर में वाइज़ मय-कशी ही मय-कशी होती

वफ़ादारी ग़ुरूर-ए-बे-रुख़ी को ख़त्म कर देगी

ज़ियादा तो नहीं कुछ दिन रहें वो बद-गुमाँ शायद

एक ही चीज़ है पर्दे में कि बैरून-ए-हिजाब

मुझ को ज़ाहिर भी किया ख़ुद को छुपाया भी गया

होश में लाने की तदबीर कर नासेह

मैं ने पाया है उन्हें चाक-ए-गरेबाँ हो कर

कारवाँ इश्क़ की मंज़िल के क़रीं पहूँचा

ख़ुद मिरे दिल में मिरे दिल का मकीं पहूँचा

मसरूर हो रहे हैं ग़म-ए-आशिक़ी से हम

क्यूँ तंग होंगे कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम

राह-ए-वफ़ा में जी के मरे मर के भी जिए

खेला उसी तरह से किए ज़िंदगी से हम

सर्द-मेहरी से तिरी गर्मी-ए-उल्फ़त रही

दिल में उठता था जो हर-दम वो शरारा भी गया

हमारी लाश गुलिस्ताँ में दफ़्न कर सय्याद

चमन से दूर कोई नौहा-ख़्वाँ रहे रहे

दिल के आईने में जब आप की सूरत देखी

जिस को धोका मैं समझता था वो धोका भी गया

ज़ुल्मतों का गुज़र कहाँ मुमकिन

उन का रौशन ख़याल आता है

निगाह-ए-पर्दा-कुशा का कमाल क्या कहना

जहाँ जहाँ वो छुपे उस ने जा के देख लिया

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