1918 - 2007 | रावलपिंडी, पाकिस्तान
ख्यातिप्राप्त शायर, अपने ना’तिया कलाम के लिए भी चर्चित. पाकिस्तान सरकार के “तमग़ा-ए-इम्तियाज़’ से सम्मानित
Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts
लोग नज़रों को भी पढ़ लेते हैं
अपनी आँखों को झुकाए रखना
कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए
वर्ना जो मेरा दुख था वो दुख उम्र भर का था
'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है
Alamat
1979
वो कम-सुख़न था मगर ऐसा कम-सुख़न भी न था कि सच ही बोलता था जब भी बोलता था बहुत
कब धूप चली शाम ढली किस को ख़बर है इक उम्र से मैं अपने ही साए में खड़ा हूँ
न जाने लोग ठहरते हैं वक़्त-ए-शाम कहाँ हमें तो घर में भी रुकने का हौसला न हुआ
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
The best way to learn Urdu online
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
A three-day celebration of Urdu