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अख़तर मुस्लिमी

1928 - 1989 | आज़मगढ़, भारत

परम्परा की गहरी चेतना के साथ शायरी करने के लिए प्रसिद्ध

परम्परा की गहरी चेतना के साथ शायरी करने के लिए प्रसिद्ध

अख़तर मुस्लिमी

ग़ज़ल 11

अशआर 24

फ़रेब-ख़ुर्दा है इतना कि मेरे दिल को अभी

तुम चुके हो मगर इंतिज़ार बाक़ी है

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एक ही अंजाम है दोस्त हुस्न इश्क़ का

शम्अ भी बुझती है परवानों के जल जाने के ब'अद

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इक़रार-ए-मोहब्बत तो बड़ी बात है लेकिन

इंकार-ए-मोहब्बत की अदा और ही कुछ है

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मेरे किरदार में मुज़्मर है तुम्हारा किरदार

देख कर क्यूँ मिरी तस्वीर ख़फ़ा हो तुम लोग

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इंसाफ़ के पर्दे में ये क्या ज़ुल्म है यारो

देते हो सज़ा और ख़ता और ही कुछ है

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पुस्तकें 5

 

चित्र शायरी 1

 

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