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अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन

1980 | संयुक्त अरब अमीरात

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन

ग़ज़ल 9

अशआर 9

आज भी नक़्श हैं दिल पर तिरी आहट के निशाँ

हम ने उस राह से औरों को गुज़रने दिया

याद रखना भी इक इबादत है

क्यूँ हम उन का हाफ़िज़ा हो जाएँ

आओ तो मेरे सहन में हो जाए रौशनी

मुद्दत गुज़र गई है चराग़ाँ किए हुए

इक लफ़्ज़ याद था मुझे तर्क-ए-वफ़ा मगर

भूला हुआ हूँ ठोकरें खाने के बअ'द भी

सवेरा ले के आता है मिरे ख़्वाबों की ताबीरें

मगर जब शाम होती है तो उन की याद आती है

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