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एहतिमाम सादिक़

1993 | बलरामपुर, भारत

एहतिमाम सादिक़

ग़ज़ल 7

अशआर 25

मुसलसल सोचते रहते हैं तुम को

तुम्हें जीने की आदत हो गई है

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अब अपना इंतिज़ार रहेगा तमाम-उम्र

इक शख़्स था जो मुझ से जुदा कर गया मुझे

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एक दिन उस को मुँह लगाया और

और सिगरेट छोड़ दी मैं ने

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सो अपने शहर के रौनक़ की ख़ैर माँगना तुम

मैं अपने गाँव से इक शाम ले के रहा हूँ

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अश्क कर ज़ुल्म ज़रा देर ठहर जा

इक शख़्स अभी मेरी निगाहों में बसा है

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चित्र शायरी 1

 

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