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Meerza Jawan Bakht Jahandar's Photo'

मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार

1749 - 1788

मुग़ल साम्राज्य के युवराज, शाह आलम सानी के बेटे

मुग़ल साम्राज्य के युवराज, शाह आलम सानी के बेटे

मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार के शेर

आख़िर गिल अपनी सर्फ़-ए-दर-ए-मय-कदा हुई

पहुँचे वहाँ ही ख़ाक जहाँ का ख़मीर हो

तिरे इश्क़ से जब से पाले पड़े हैं

हमें अपने जीने के लाले पड़े हैं

मुझ दिल में है जो बुत की परस्तिश की आरज़ू

देखी नहीं वो आज तलक बरहमन के बीच

कहें सो किस से 'जहाँदार' उस की नज़रों में

रक़ीब काम के ठहरे और हम हैं ना-कारे

की दिल ने दिल-बरान-ए-जहाँ की बहुत तलाश

कुइ दिल-रुबा मिला है दिल-ख़्वाह क्या करे

बसान-ए-नक़्श-ए-क़दम तेरे दर से अहल-ए-वफ़ा

उठाते सर नहीं हरगिज़ तबाह के मारे

सर-रिश्ता कुफ़्र-ओ-दीं का हक़ीक़त में एक है

जो तार-ए-सुब्हा है सो है ज़ुन्नार देखना

मिरा ख़ून-ए-दिल यूँ बहा दश्त में

कि जंगल में लोहू के थाले पड़े

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