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मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी

1840 - 1902

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी

ग़ज़ल 17

अशआर 11

हर इक फ़िक़रे पे है झिड़की तो है हर बात पर गाली

तुम ऐसे ख़ूबसूरत हो के इतने बद-ज़बाँ क्यूँ हो

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चार बोसे तो दिया कीजिए तनख़्वाह मुझे

एक बोसे पे मिरा ख़ाक गुज़ारा होगा

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जो तेरे गुनह बख़्शेगा वाइ'ज़ वो मिरे भी

क्या तेरा ख़ुदा और है बंदे का ख़ुदा और

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लड़ाओ नज़र रक़ीबों से

काम अच्छा नहीं लड़ाई का

हिदायत शैख़ करते थे बहुत बहर-ए-नमाज़ अक्सर

जो पढ़ना भी पड़ी तो हम ने टाली बे-वज़ू बरसों

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पुस्तकें 14

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