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नील अहमद के शेर

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दिल की उदासियों का कोई सबब नहीं है

बस ये सबब है मेरे दिल की उदासियों का

जब जब तुम को याद करें हम

तब तब बारिश हो जाती है

किसी को याद करने के नहीं मख़्सूस कुछ लम्हे

कोई जब याद जाए तो फिर वो याद आता है

ज़िंदगी से मिले हुए हो तुम

वो भी मुझ से मज़ाक़ करती है

अपनी आँखों को नोच डाला है

तुम को पाने के ख़्वाब बुनती हैं

ख़ुद-फ़रेबी रहे तो अच्छा है

ख़ुद-शनासी तबाह कर देगी

सीने से दिल निकाल के हाथों पे रख दिया

मैं ने तो बस कहा था कि धड़कन का शोर है

हवा का रंग नहीं है मगर मिज़ाज तो है

हवा से दोस्ती करना कोई मज़ाक़ नहीं

और फिर मोहब्बत में जी के मर के देखा है

लोग सोचते हैं जो हम ने कर के देखा है

मिरे सीने से लग कर देर तक रोती है तन्हाई

किसी ने कह दिया उस से मोहब्बत हो गई मुझ को

क़ैद कर लो मुझे ख़यालों में

इस जहाँ से रिहाई मिल जाए

सीने से दिल निकाल के हाथों पे रख दिया

मैं ने तो बस कहा था कि धड़कन का शोर है

अपनी आँखें नहीं जलाऊंगी

मैं ने बुझते चराग़ देखे हैं

कितने आलम गुज़र गए मुझ पर

तुम को सोचा था एक लम्हे को

सुकूत-ए-शहर-ए-दिल की बेबसी को भी कोई समझे

ख़ामुशी बोलती है तो भला क्या क्या नहीं कहती

फूलों की ज़द में के कहीं जान से जाए

मैं ने इसी ख़याल से तितली उड़ाई है

सारे जज़्बे तिरी चाहत के दिखाई देते

काश आँखों में कहीं दिल भी धड़कता होता

ये मुख़्तसर सी शिकन क्या बताएगी तुम को

मिरे वजूद में गहरी कई ख़राशें हैं

तुम को खोया था एक लग़्ज़िश में

उम्र सारी कटी है गर्दिश में

मैं जल गई हूँ धूप की किरनों से जा-ब-जा

और वो समझ रहे हैं कि रंगत निखर गई

यूँ तो मोहब्बतों में बड़ी क़ुर्बतें रहीं

लेकिन जो दिल से पूछो तो ख़ल्वत कमाई है

सारे जज़्बे तिरी चाहत के दिखाई देते

काश आँखों में कहीं दिल भी धड़कता होता

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