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नोमान शौक़

1965 | नोएडा, भारत

अग्रणी उत्तर-आधुनिक शायर, ऑल इंडिया रेडियो से संबंधित।

अग्रणी उत्तर-आधुनिक शायर, ऑल इंडिया रेडियो से संबंधित।

नोमान शौक़ के शेर

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इश्क़ में सच्चा था वो मेरी तरह

बेवफ़ा तो आज़माने से हुआ

अपनी आहट पे चौंकता हूँ मैं

किस की दुनिया में गया हूँ मैं

एक करवट पे रात क्या कटती

हम ने ईजाद की नई दुनिया

कुछ था मेरे पास खोने को

तुम मिले हो तो डर गया हूँ मैं

और मत देखिए अब अद्ल-ए-जहाँगीर के ख़्वाब

और कुछ कीजिए ज़ंजीर हिलाने के सिवा

सैर-ए-दुनिया को जाते हो जाओ

है कोई शहर मेरे दिल जैसा

हम को डरा कर, आप को ख़ैरात बाँट कर

इक शख़्स रातों-रात जहाँगीर हो गया

डर डर के जागते हुए काटी तमाम रात

गलियों में तेरे नाम की इतनी सदा लगी

इश्क़ क्या है ख़ूबसूरत सी कोई अफ़्वाह बस

वो भी मेरे और तुम्हारे दरमियाँ उड़ती हुई

हम भी माचिस की तीलियों से थे

जो हुआ सिर्फ़ एक बार हुआ

रूह की थाप रोको कि क़यामत होगी

तुम को मालूम नहीं कौन कहाँ रक़्स में है

रो रो के लोग कहते थे जाती रहेगी आँख

ऐसा नहीं हुआ, मिरी बीनाई बढ़ गई

दिल दे दे मगर ये तिरा हुस्न-ए-बे-मिसाल

वापस कर फ़क़ीर को आख़िर बदन तो है

चाहता हूँ कि पुकारे तुम्हें दिन रात जहाँ

हर तरफ़ मेरी ही आवाज़ सुनाई दे मुझे

उस ने हँस कर हाथ छुड़ाया है अपना

आज जुदा हो जाने में आसानी है

नाम से उस के पुकारूँ ख़ुद को

आज हैरान ही कर दूँ ख़ुद को

मिरा कुछ रास्ते में खो गया है

अचानक चलते चलते रुक गया हूँ

हम जैसों ने जान गँवाई पागल थे

दुनिया जैसी कल थी बिल्कुल वैसी है

पहनते ख़ाक हैं ख़ाक ओढ़ते बिछाते हैं

हमारी राय भी ली जाए ख़ुश-लिबासी पर

वो साँप जिस ने मुझे आज तक डसा भी नहीं

तमाम ज़हर सुख़न में मिरे उसी का है

वो मेरे लम्स से महताब बन चुका होता

मगर मिला भी तो जुगनू पकड़ने वालों को

उलझते रहते हो बे-जान मंज़र में किसी से

हज़ारों साल की पहचान पल-भर में किसी से

दिन को रुख़्सत किया बहाने से

रात थी वो मिरे सितारे की

कोई समझाए मिरे मद्दाह को

तालियों से भी बिखर सकता हूँ मैं

मैं अपने साए में बैठा था कितनी सदियों से

तुम्हारी धूप ने दीवार तोड़ दी मेरी

मैं अगर तुम को मिला सकता हूँ महर-ओ-माह से

अपने लिक्खे पर सियाही भी छिड़क सकता हूँ मैं

ऐसी ही एक शब में किसी से मिला था दिल

बारिश के साथ साथ बरसती है रौशनी

फ़लक का थाल ही हम ने उलट डाला ज़मीं पर

तुम्हारी तरह का कोई सितारा ढूँडने में

इश्क़ का मतलब किसे मालूम था

जिन दिनों आए थे हम दिल हार के

ज़रा ये हाथ मेरे हाथ में दो

मैं अपनी दोस्ती से थक चुका हूँ

फूल वो रखता गया और मैं ने रोका तक नहीं

डूब भी सकती है मेरी नाव सोचा तक नहीं

फ़क़ीर लोग रहे अपने अपने हाल में मस्त

नहीं तो शहर का नक़्शा बदल चुका होता

मेरी ख़ुशियों से वो रिश्ता है तुम्हारा अब तक

ईद हो जाए अगर ईद-मुबारक कह दो

पाँव के नीचे से पहले खींच ली सारी ज़मीं

प्यार से फिर नाम मेरा शाह-ए-आलम रख दिया

जान-ए-जाँ मायूस मत हो हालत-ए-बाज़ार से

शायद अगले साल तक दीवाना-पन मिलने लगे

अब इसे ग़र्क़ाब करने का हुनर भी सीख लूँ

इस शिकारे को अगर फूलों से ढक सकता हूँ मैं

वो तंज़ को भी हुस्न-ए-तलब जान ख़ुश हुए

उल्टा पढ़ा गया, मिरा पैग़ाम और था

ख़ुदा मुआफ़ करे सारे मुंसिफ़ों के गुनाह

हम ही ने शर्त लगाई थी हार जाने की

ये ख़्वाब कौन दिखाने लगा तरक़्क़ी के

जब आदमी भी अदद में शुमार होने लगे

मौसम-ए-वज्द में जा कर मैं कहाँ रक़्स करूँ

अपनी दुनिया मिरी वहशत के बराबर कर दे

आँख खुल जाए तो घर मातम-कदा बन जाएगा

चल रही है साँस जब तक चल रहा हूँ नींद में

किनारे पाँव से तलवार कर दी

हमें ये जंग ऐसे जीतनी थी

सुनाई देती है सात आसमाँ में गूँज अपनी

तुझे पुकार के हैरान उड़ते फिरते हैं

मोहब्बत वाले हैं कितने ज़मीं पर

अकेला चाँद ही बे-नूर है क्या

उस का मिलना कोई मज़ाक़ है क्या

बस ख़यालों में जी उठा हूँ मैं

चाहता हूँ मैं तशद्दुद छोड़ना

ख़त ही लिखते हैं जवाबी लोग सब

आइने का सामना अच्छा नहीं है बार बार

एक दिन अपनी ही आँखों में खटक सकता हूँ मैं

कभी लिबास कभी बाल देखने वाले

तुझे पता ही नहीं हम सँवर चुके दिल से

ख़याली दोस्तों के अक्स से खेलोगे कब तक

मेरे बच्चे कभी मिल लो भरे घर में किसी से

नाम ही ले ले तुम्हारा कोई

दोनों हाथों से लुटाऊँ ख़ुद को

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