aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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सरदार सलीम

1973

सरदार सलीम

ग़ज़ल 11

अशआर 7

कुछ ऐसा हो कि तस्वीरों में जल जाए तसव्वुर भी

मोहब्बत याद आएगी तो शिकवे याद आएँगे

फ़िक्र एहसास के तपते हुए मंज़र तक

मेरे लफ़्ज़ों में उतर कर मिरे अंदर तक

आज दीवाने का ज़ौक़-ए-दीद पूरा हो गया

तुझ को देखा और उस के बाद अंधा हो गया

बादशाहत के मज़े हैं ख़ाकसारी में 'सलीम'

ये नज़ारा यार के कूचे में रह के देखना

नूर की शाख़ से टूटा हुआ पत्ता हूँ मैं

वक़्त की धूप में मादूम हुआ जाता हूँ

पुस्तकें 14

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