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Shaikh Ibrahim Zauq's Photo'

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

1790 - 1854 | दिल्ली, भारत

आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के उस्ताद और राजकवि , मिर्ज़ा ग़ालिब से उनकी प्रतिद्वंदिता प्रसिद्ध है।

आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के उस्ताद और राजकवि , मिर्ज़ा ग़ालिब से उनकी प्रतिद्वंदिता प्रसिद्ध है।

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ के ऑडियो

ग़ज़ल

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे

नोमान शौक़

आते ही तू ने घर के फिर जाने की सुनाई

नोमान शौक़

इक सदमा दर्द-ए-दिल से मिरी जान पर तो है

नोमान शौक़

क़स्द जब तेरी ज़ियारत का कभू करते हैं

नोमान शौक़

कोई इन तंग-दहानों से मोहब्बत न करे

नोमान शौक़

कौन वक़्त ऐ वाए गुज़रा जी को घबराते हुए

नोमान शौक़

बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई

नोमान शौक़

मार कर तीर जो वो दिलबर-ए-जानी माँगे

नोमान शौक़

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले

नोमान शौक़

सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है

नोमान शौक़

हुए क्यूँ उस पे आशिक़ हम अभी से

नोमान शौक़

हम हैं और शुग़्ल-ए-इश्क़-बाज़ी है

नोमान शौक़

हाथ सीने पे मिरे रख के किधर देखते हो

नोमान शौक़

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