ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल 38
अशआर 1
किसे सुनाएँगे अब वो 'ज़ाकिर' कि चाहतों में कशिश नहीं है
नज़र से ओझल मैं हो रहा हूँ निगह से वो भी तो हट रही है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere