aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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महबूब राही

1939 | अकोला, भारत

महबूब राही

ग़ज़ल 19

नज़्म 1

 

अशआर 2

अल्ताफ़-ओ-करम ग़ैज़-ओ-ग़ज़ब कुछ भी नहीं है

था पहले बहुत कुछ मगर अब कुछ भी नहीं है

फिर मसाइल के यज़ीद आए हैं बै'अत लेने

गर्म फिर मा'रका-ए-कर्ब-ओ-बला है मुझ में

 

पुस्तकें 17

 

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