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भारतीय संगीत के विद्वान और संगीतकार।

भारतीय संगीत के विद्वान और संगीतकार।

शाहिद मीर

ग़ज़ल 16

अशआर 9

ख़ौफ़ से अब यूँ अपने घर का दरवाज़ा लगा

तेज़ हैं कितनी हवाएँ इस का अंदाज़ा लगा

तुझ को देखा नहीं महसूस किया है मैं ने

किसी दिन मिरे एहसास को पैकर कर दे

बुझती हुई सी एक शबीह ज़ेहन में लिए

मिटती हुई सितारों की सफ़ देखते रहे

रोने से और लुत्फ़ वफ़ाओं का बढ़ गया

सब ज़ाइक़ा फलों में नए पानियों का है

वही सफ़्फ़ाक हवाओं का सदफ़ बनते हैं

जिन दरख़्तों का निकलता हवा क़द होता है

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दोहा 10

काग़ज़ पर लिख दीजिए अपने सारे भेद

दिल में रहे तो आँच से हो जाएँगे छेद

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ज़ेहन में तू आँखों में तू दिल में तिरा वजूद

मेरा तो बस नाम है हर जा तू मौजूद

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जीवन जीना कठिन है विष पीना आसान

इंसाँ बन कर देख लो 'शंकर' भगवान

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शब गुज़री बुझने लगा रौशनियों का शहर

लौटी साहिल की तरफ़ थकी थकी इक लहर

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'शाहिद' लिखना है मुझे ये किस की तारीफ़

डरा डरा सा क़ाफ़िया सहमी हुई रदीफ़

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पुस्तकें 7

 

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