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नज़्म
व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे)
हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो
शहर-ए-जानाँ में अब बा-सफ़ा कौन है
दस्त-ए-क़ातिल के शायाँ रहा कौन है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
न वो रंग फ़स्ल-ए-बहार का न रविश वो अब्र-ए-बहार की
जिस अदा से यार थे आश्ना वो मिज़ाज-ए-बाद-ए-सबा गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
लेनिन
रानाई-ए-तामीर में रौनक़ में सफ़ा में
गिरजों से कहीं बढ़ के हैं बैंकों की इमारात
अल्लामा इक़बाल
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ग़ज़ल
सिर्फ़ ज़ाहिर हो गया सरमाया-ए-ज़ेब-ओ-सफ़ा
क्या तअ'ज्जुब है जो बातिन बा-सफ़ा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन
क्यूँ ख़्वार हैं मर्दान-ए-सफ़ा-केश ओ हुनर-मंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ता-साफ़ करे दिल न मय-ए-साफ़ से सूफ़ी
कुछ सूद-ओ-सफ़ा इल्म-ए-तसव्वुफ़ नहीं करता
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
नज़्म
मोहब्बत
सुना है आलम-ए-बाला में कोई कीमिया-गर था
सफ़ा थी जिस की ख़ाक-ए-पा में बढ़ कर साग़र-ए-जम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तीन आवाज़ें
सर्व-क़द मिट्टी के बौनों के क़दम चूमेंगे
फ़र्श पर आज दर-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा बंद हुआ